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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ |
॥ २२५॥
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अवमाणे वि य, सो सव्वत्थ वि समाणमणो ॥५०॥ कुणइ गुरूण सयासे, अभिग्गहं दसविहे वि समणाण। बेयावच्चे गेन्हइ, छट्ठपइन्नं लहु तवे वि ॥५१॥ इय जाब नियपइन्नं, परिवालइ सो अखंडपरिणामो। बहुवाससहस्सेहिं, गएहिं तो तं महासत्तं ॥५२॥
16 वसुदेवपूर्वसोहम्मसहामज्झे वरवेयावश्चनिश्चल चरितं । संथुणइ अमरनाहो, अहो कयत्थो मुणी एसो ॥५३॥ वेयावच्चमि थिरो, न सद्दहियं ||
INभवे नंदीषणसुरेहिं तं दोहिं । काऊण साहुवेसं, एगो बाहिं ठिओ ताण ।। ५४ ॥ वसहीए गओ बीओ, गिम्हे खरतरणिताविओ स मुणी ।
1 मुनिसन्धिः । छतवचरणपारणनिमित्तमुक्खिवइ जा पढमं ।। ५५ ॥ नवकोडिसुद्धकवलं, तावाऽऽहरियं सुरेण जइ कोइ। अस्थि मुणी इह गच्छे, गिलाणपडियरणकयनियमो ॥ ५६ ।। पडिजागरओ गिलाणं, विसमावत्थं इमं निसामेउं । तो नंदिसेणसाहू, समुदिओ उज्झिउं कवलं
॥ ५७ ॥ केणोसहेण सजं, कहिं कहिं अस्थि सोत्ति जंपंतो। सुरसाहुणा वि भणियं, पाउक्खालेण अभिभूओ ॥ ५८ ॥ सो | चिइ अडवीए, तं पुण निल्लज्ज एत्थ निच्चिंतो। भोत्तुं महुराहारे, सुयसि सुहेणं अहोरत्तं ।। ५९॥ वेयावच्चकरोऽहं ति नाममेत्तेण विहियसंतोसो। ता भणइ नंदिसेणो, न पमायाओ मए नायं ॥ ६० ॥ पणमिय पुणो पुणो वि य, खामिय तो अमरसाहूणा एसो। तक्खेत्तकालदुलहलंभं बहुओसहसमूह ॥ ६१ ॥ आणाविओ जलं पिहु, उन्हं तो सुरवरेण पइगेहं । बिहिया असणा से, तहवि अदीणो सुरं छलिउं ।। ६२ ॥ घेत्तूण तयं सव्वं, संपत्तो तस्स साहुणो पासे । तो तं दटुं स मुणी, किर कुद्धो जंपए एवं ॥ ६३ ॥ चिट्ठामि अहमरन्ने, रोगमहावेयणाए अकंतो। तं पुण पाविदुनिकिट्ठ-दुटु ! चिट्ठसि सुहं सुत्तो ।। ६४ ॥ निब्भच्छिओ वि एरिसवयणेहिं पुणो पुणो वि खामेइ । अमयं पिव तव्वयणं, मन्नइ स महामुणी सव्वं ॥६५॥ कह निरुओ कायव्वो, अयंति जिमंतएण असुहाओ। अणुजाणाविय असुईविलित्तमंग नियकरेहिं ।। ६६ ।। पक्खालिउं कओ सो साहू खंधमि नंदिसेणेण । खलियंमि पए ताडइ, सिरंमि तं करपहारेहि ॥ ६७॥ मुंचइ दुगंधमसुई, उवरिं सो नंदिसेणतवनिहिणो । खारविसेसेण व जेण, झत्ति तच्छिज्जए अंग ॥ ६८ ॥ ससरीरगस्स गुरुगिरिसिलाए लोहस्स वा कुणइ भारं । जंपइ किं कढिण
॥२२५॥ करेहि, धरसि पाविट्ठ मज्झ तणुं ॥ ६९॥ किं न वियाणसि पीडं, परस्स निभम्गसेहर ! अणज । इय निठुरं भणतस्स, तस्स
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