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उपदेशमालाविशेषवृत्ती
॥२०९॥
भणइ । सारक्खह सुयमेयं, जं पवयणपालगो होही ॥ ४५ ॥ वइरुत्तिय से नाम, विहियं समणीण सो वसे विहिओ। ताहे सेज्जायरमंदिरंमि निहिओ स तहिं सिसू ॥ ४६ ॥ जइया गिहबालाणं, न्हाणं थणपाणमंडणाईयं । कीरइ तया इमस्सावि फासु- IN|वनस्वामिएण विहाणेणं ॥४७॥ एवं सो संवदृइ, सव्वेसिमईव चित्तसंतोसी । सूरी बाहिं विहरइ, तं जणणि ममिग लग्गा ॥४८॥ चरित्रम् । निक्खेवगो इमो णे न, समप्पेमो दिणे दिणे सा उ । थणपाणं कारेई एवं, जाओ तिवरिसो सो ॥४९॥ तत्थागयम्मि सूरिम्मि, | अन्नया सा वि वायमारूढा । ताए तमणप्तेि, ववहारो राउले जाओ ॥ १५० ॥ पुदो य धणगिरी पत्थिवेण स भणइ मे सह| त्येण । दिन्नो इमीए नवरं, पुरं सुनंदाए पक्खंमि ॥ ५१ ॥ रन्ना भणियं तणयं, मज्झ पुरो ठाविऊणमुल्लवह । जं सरइ तस्स | एसो, पडिवन्नमिमेणमेयंति ।। ५२॥ बालजणम्सुचियाई, खेल्लावणयाई णेगरूवाई। गिन्हइ जणणी सिसुलोयलोयणाणंददाईणि | । ॥ ५३ ॥ पत्ते पसत्थ दिवसे, दोन्नि वि वग्गा उवद्विया निवई । राया पुव्वाभिमुहो, दाहिणओ संठिओ संघो ॥५४॥ वामेण |
सुनंदापरियणेण सव्वेण अणुगया ठाइ । भणइ निवो मह मेरा, तुम्हाणमिमाणंति ॥ ५५ ॥ जाए दिसाए बालो, निमंतिओ जाइ16 | तेसिमेवेसो । धम्मो जं पुरिसवरो, जणओ वाहरओ ता पुट्विं ॥ ५६ ॥ इय भणिए नरवइणा, नागरगजणो भणेइ कयनेहो | एसो पढम चिय, एसु भणउ ता अम्मया पुव्वं (पढम) ।। ५७ ।। तह माया दुक्करकारणित्ति अइमुच्छसत्तजुत्ता य। ता सा आसे वसहे, करि-करहे रयणमणिचिए ।। ५८ ।। इंसित्तु सुकोमलनेहलेहिं करुणेहिं जंपियव्वेहिं । अइदीणमुही तं वइर !, एहि इत्तो इमं भणइ ॥ ५९॥ तो तं पलोयमाणो, अच्छइ जाणइ य जइ इमं संघ । अवमन्नामि सुदीहं, तो संसारं परिभमामि ॥१६०॥ एसा वि य पव्वज, मइ पव्वइयंमि नियमओ काही । इय चिंतंतो तीए, तिक्खुत्तो सद्दिओ नेइ ॥ ६१ ॥ भणिओ जणएण | तओ, रयहरणं नियकरे करेऊण । कमलदलदीहलोयणजुयलो ससिमंडलमुहो य ॥ ६२ ॥ जहा-जइ सुकयव्ववसाओ, धम्मज्झयमूसियं इमं वयर !। गिन्ह लहुँ रयहरणं, कम्मरयपमजणं धीर ! ।। ६३ ।। तुरियमणेणं गंतुं, गहियं लोगेण जयइ धम्मोत्ति ।।
॥२०९॥ उक्किटिसीहनाओ, कओ तओ चिंतए जणणी ॥ ६४ ॥ मह भाया अह भत्ता, संपइ पुत्तोवि पत्तपव्वजो । कस्स कए गिहवासे,
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