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उपदेशमाला विशेषवृत्तौ
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उद्घाईऊणमारद्धो । मलमलिणतणुवासो, पहसेउ पावविप्पेहिं ॥ ५८ ॥ जंपंति पुरो ते तस्स कीस पत्तोऽसि रे ! पिसल्लतुल्ल तुमं । नणु तुरियं एयाओ, थामाओऽवक्कमं कुणसु ||५९|| अइमलिणकुचेलअचेलदुक्कउम्मुक्कलज्जमज्जाय ! पत्तो पवित्तपत्ताणमम्हमपवित्त ! किं पासे ॥ ६० ॥ एत्यंतरंमि जक्खो, रिसिणो देहंमि पविसिउं भणइ । भिक्खत्थमागओ हं. ता दिज्जउ मज्झ भो ! भिक्खा ॥ ६१ ॥ विप्राः - जो जाइकुलविसुद्धा, वेयविहिन्नू सकम्मसंतुट्टा ताण दियाणं दाणाय, सिद्धमन्नं तुह निसिद्धं ॥ ६२ ॥ साधुः - सई विरओ हिंसमुसा - अदिन्नमेहुण परिग्गहाओ अहं । समसत्तु - मित्त-ककर - कणओ परिमुक्कहंकारो ॥ ६३ ॥ परिचत्त गिहावासो, उग्गमउपायणेसणासुद्धं । भिक्खेमि भिक्खमित्तं, गिहे गिहे तेण पत्तोहि ॥ ६४ ॥ एसो य कओ पाओ, पायं तुम्हेंहिं नियनिमित्तं । ता एयाओ मज्झवि, धम्मट्ठा देह भो ! भिक्खं ॥ ६५ ॥ विप्राः - जाव दिएहिं न भुत्तो, पढमं जलमि जाव न छुढो । ताव न दिज्जइ एसो, सुदक्षणं वच्च ता समण ! ॥ ६६ ॥ पवरे फलंति खेत्ते, जह विहिणा वावियाणि बीयाणि । फलइ तहा पि(व)उ बंभण !, जलणंम्मि निवेसियं दाणं ॥ ६७ ॥ अह मुणिणा ते भणिया, जाईमेत्तेण हुंति नो विप्पा । तुम्हारसा हि पावा, हिंसमुसामेहुणासत्ता ॥ ६८ ॥ जलणो वि पावहेऊ, कह तंमि निवेसियं सुहं कुणइ । पिउणो वि परभवगया, इह दिन कह णु गिति ।। ६९ ।। इय पडिकूलालीयप्पलावसीलेण हीलिया अम्हे । एएणं ति मुणिं ते, पहाविया परि सव्वे ॥ ७० ॥ दंड - कस-सह-लेडुहिं, ताण थाणुव्व थंभिया केवि । दूरे धरिया जक्खेण, मुणितणू विहियरक्खेण ॥ ७१ ॥ छिन्नतरुणो व्व धरणीए, पाडिया ताडिऊण पुण एगे। अवरे पहारपहया, मुद्देण मोयाविया रुहिरं ॥ ७२ ॥ दट्ठूण भट्टचट्टे, महियम रट्टे (हे ) तहविहे तो ते । भयवेवमाणहियया, भद्दा रुद्रेण सह भणइ ॥ ७३ ॥ एसो सो जेण तया, सयंवरा आगया अहं मुक्का | सिद्धि (नववहु ) निबध्धुकंठो, नेच्छइ सुरसुंदरीओ वि ॥ ७४ ॥ अइतिब्बतवपरक्कम्मवसी कयासेसमाणवसुरोहो । तिहुयपणयपयग्गो, नाणाविह लद्धिसुसमिद्धो ।। ७५ ।। जियकोमाणमाया - लोहपरीसहरिक महासत्तो निदुवियपावपसरो, पसरंतअणतजसजोन्हो || ७६ ।। जलणोव्व दहइ भुवणं, रुट्ठो रक्खेइ पुण तयं तुट्टो । ता एयं ताडिता, तुब्भे निब्भंतमेव मया || ७७ ||
हरिकेशमुनि
कथा ।
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