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भत्तीए तेण जक्खणहिटिया तिव्वकोवाओ ॥ ३७॥ असमंजसप्पलावा, पलोयमाणी दिसाउ सुन्नाउ । भवणे निवस्स नीया, उपदेशमाला
10 हरिकेशमुनि. नरिंदपुरिसेहि सा कहवि ॥ ३८ ॥ किरियाओ पउत्ताउ, चित्ताओ मंतवाइपमुहेहिं । तहवि न विसेसलेसो वि, तीए कत्तो वि विशेषवृत्तौ । संजाओ ।। ३९ ॥ इय सव्वे जा जाया, कुंठा वेजाइणो तओ जक्खो। जंपइ पत्तम्मि ठिओ, एयाए निदिओ साहू ॥४०॥
कथा। ॥ १९८॥
ता जइ एयं तस्सेव, देह मुंचामि तो असंदेहं । रन्नावि जीवउत्तिय, पडिवन्नं जक्खवयणं तं ॥४१॥ तो सा सत्थावत्था, सव्वालंकारभूसियसरीरा । पिउणा परिणयणकए, पट्टविया मुणिसमीवंमि ॥ ४२ ॥ तं पाडियपाएसु, पहाणपुरिसेहिं सो मुणी भणिओ। निवकन्नाए गेण्हसु, सयंवराए करेण करं ॥ ४३ ॥ भणियं मुणिणा हो, पहाणपुरिसा! किमेरिसं भणह । जाणइ पसू वि एवं, जइणो जमदंभवभधरा ॥ ४४ ॥ इत्थीहिं समं वासंपि, जे न इच्छंति एकवसहीए । कह ते निययकरेणं, रमणीण करं गहिस्संति ॥ ४५ ॥ सिद्धिवहुबद्धरागा, असुईपुन्नासु कह णु जुवईसु । रजंति महामुणिणो, गेवेजगवासिदेवव्व ॥ ४६॥ किं न श्रतं श्रुतमेतत-"हत्थपायपडिच्छिन्नं, कन्ननासविगप्पियं । अवि वाससयं नारिं, बंभयारी विवज्जए ।। ४७ ॥" तो जायामरिसेणं जक्खेणं छाइऊण रिसिरुवं । महरिसिणो काउण रूवं सयमेव परिणीया ॥४८॥ वेलविऊणं सयलंपि, जामिणिं जाव तेण सा मुक्का । ताव अपिक्खंती किंपि, तत्थ जाया विलक्खमुही ॥४९॥ पत्थिवपासे पत्ता, रोयंती संजणेइ जणयदुहं । तो भणइ रुद्ददेवो, पुरोहिओ ID पत्थिवं एवं ॥५०॥ चत्ता पत्ती जा महरिसीहिं, सा होइ बंभणाण धुवं । मह दक्खिणाए दिजउ, ता देव ! किमेत्थ चिंताए ॥५१॥ मडयजडपाणिपक्खित्तखीरिभक्खणखणपि जो महइ । तस्स किमेयमकज, दारे सव्वंपि सम्माइ ॥ ५२ ॥ जुत्तमिणमेव अहुणत्ति, तेण दिन्ना दियस्स तस्सेव । तो वहुवराण ताण, जाओ संजोगसंतोसो ॥५३॥ उयह अहो अंतरमेयमुज्झिया जा महेसिणा तरुणी । दुग्गइदार त्ति पुरोहिएण स च्चिय परिग्गहिया ॥ ५४॥ सह तीए महाभोए, भुंजतयस्स तस्स सुहं । कालोऽइक्कमइ कयाइ, जन्नमारभइ रभसेण ॥ ५५ ॥ ठविया जन्नारंभे, भद्दा रुद्देण जन्नपत्ति त्ति । देसंतरा हि पत्ता, भट्टा चट्टा य तत्थ बहू ॥५६॥ मासुववासऽवसाणे, बलसाहु जन्नमंदिरदुवारे । भिक्खट्टाए पविट्ठो, दिट्ठो रुदस्स चट्टेहिं ॥ ५७ ॥ अह भणियधम्मलाभो, धन्नो |
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