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________________ उपदेशमालाविशेषघृत्ती LOP ॥ १९२॥ सहन्ते, न पुनर्लान्ति-गृह्णन्ति विरुद्धमनेषणीयाभिग्रहभङ्गकारीति ॥४१॥ अथापत्सु दृढधर्मतां दृष्टान्तेनोपदिशति-"जतेहिं गाहा" IN आपत्सु बढ अक्षरार्थः स्पष्टो । भावार्थः कथानकगम्यस्तच्चेदम् धर्मता उपरि सावत्थीए पुरीए, जियसत्तू आसि नरवई तस्स । धारिणीपियाए जाओ, नयसारो खंदगकुमारो ॥१॥ अहिगयजीवाजी स्कंदकाचार्य वाइ-वत्थुवित्थारथिरमणो सुमई। जिणपवयणपत्तट्ठो, धम्माणुट्ठाणठाणटो ॥ २॥ तस्स कणिट्ठा इट्ठा, आसि पुरंदरजसा ससा सा कथा । य। कुंभारकडाहिवदंडइस्स दिन्ना नरिंदस्स ॥ ३ ॥ तेण कयाई जियसत्तु-अंतिए पालगोत्ति पटुविओ। केणवि पओयणेणं, नाहियवाई दिओ दुट्ठो ॥ ४ ॥ जियसत्तुमहापत्थिवअत्थाणे आगओ सह सहाए । अस्थि पयत्थवियारो, सुपसत्थो पत्थुओ तत्थ ॥५॥ परलोयपुनपावप्पाणी पडिहणइ जाव परिसाए। गयसंकोचं को तुडतंडवाडंबरेणं सो॥ ६॥ नयहेउजुत्तिदिटुंतदिदअट्रप्पइट्रियमणेण । निप्पिटुपसिणवागरणवाणिओ खंदगेण कओ ॥ ७ ।। जह खज्जोओ पज्जोयणस्स पारेइ नो पुरो फुरिउ । तह नाहियवाई सोवि, तस्स खंदगकुमारस्स ॥ ८॥ केसरिकिसोरगुंजार-सवणओ हरिणओ जहा होइ । तह सो सुन्नो वुन्नो, तुहिकोऽहोमुहो य ठिओ ॥ ९॥ अह उग्घुटै परिसाए, सासणं जिणवराण जयइत्ति । ओहामिओ गओ सो, पालगपावो सरजंमि ।। १० । संसारचारगओ, निच्चुव्विग्गो य खंदगकुमारो। विसए विसं व दटुं, चित्तं तत्ते पवत्तेइ ॥ ११ ॥ - यथा-" रे चेतः करवै किमीश विषयत्यागं किमेभिः कृतं, विप्रत्यायनमावयोः कथमिव ब्रूमः कियद्गोप्यते । एते हि क्षणभङ्गुरं परिणतो निस्सारमल्पं सुखं, दत्वेव प्रतिगोपयन्ति कृतिनां निर्द्वद्वसौख्यं परम् ॥१२॥" तओ-सिरि मुणिसुव्वयपासे, पुरिसाण सएहिं पंचहि समेओ। पडिवज्जियपव्वजो स, जई जाओ जससहाओ ॥ १३ ॥ कालक्कमेण सूरित्तणंपि पत्तो पवित्तनाणनिही । दिनो से परिवारो, पहुणा तो चेव पंचसया ॥ १४ ॥ पहुमेगया स पुच्छह कुंभारकडे पुरे विहाराय । पडिबोहणाय तीए, लहुभयणिपुरंदरजसाए ॥ १५ ॥ अह पहुणा भणिओ सो उवसग्गो मारणंतिओ Coppeacoccool Dorporatecomecamera रिसाए, सासणं गर-सवणओ हरिणओजस पारेइ नो पुरा
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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