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तदलाभवइयरे सिटी
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, आसि पुरा धन्नपर
नराहिवचरीओ
उपदेशमाला
भावितो सइ सुयं अहिजतो । कुव्वंतो विविहतवं, विहरइ सव्वन्नुणा सद्धिं ॥ १६ ॥ विहरंतस्स य नियपुव्वजम्भनिव्वत्तियं अणिटफलं । समुदिनमंतराइयकम् ढंढणकुमारस्स ॥ १७ ॥ तो तद्दोसेणं जेण साहुणा सह भमेइ सो भिक्खं । तस्स वि लद्धि
10|अलाभपरिविशेषवृत्तौ
षहे ढंढणउवहणइ, अहह भीमाई कम्माई ॥ १८ ॥ एगमि अवसरंमि, मुणिहिं तदलाभवइयरे सिटे । मूलाउ च्चिय सिट्ठो, तव्वुत्तंतो जिणि
मुनि कथा। देण ॥ १९॥ जहा—मगहविसयावयंसे, आसि पुरा धन्नपूरगग्गामे । किसि पारासरनामो, बलाहिओ विप्पकुलनामो ॥ २० ॥ अह अन्नया नराहिवचरीओ करिसित्तु उवरया पत्ते । भोयणसमयंमि छुहा, किलामिया करिसया सुढिया ॥ २१ ॥ वसभाय चंभमेकेकमप्पणो तेण दाविया खेत्ते । हच्छमणिच्छंता विहु, बलाभिओगाइकरणेणं ।। २२ ।। तप्पञ्चइयं च दढं, निव्वत्तियमंतराइयं 6 तेण । मरिऊण य उप्पन्नो, नेरईओ निरयपुढवीए ॥ २३ ॥ तत्तो उव्वट्टित्ता, विचित्तभेयासु तिरियजोणीसु । देवेसु मणूसेसु य, संसरियं सुकयकम्मवसा ।। २४ । सोरदृविसयभूसणवारवई सामिवासुदेवस्स । पुत्तत्तणुववन्नो, धन्नो ढंढणकुमारोत्ति ॥ २५ ॥ तं सोउं सो धीमं, अभिग्गहं गिण्हए जिणसगासे । एत्तो परलद्धीए, मुंजिस्समहं न कइयावि ॥ २६ ॥ एवं सुहडोव्व अलाभवेरिणा तेणमपरिभूओ सो। निच्च अविसमचित्तो, तित्तोव्व दिणाई वोलेइ ॥ २७ ॥ अह अन्नया जिणिंदो, पुट्ठो कंसारिणा भयवमेसिं । साहूणं को मज्झे, दुक्करगारित्ति वागरसु ॥ २८ ।। तो भणियं जगगुरुणा, नणु दुकरकारगा इमे सव्वे । नवरं दुकरकारी, एत्तो वि हु ढंढणकुमारो ।। २९ ।। बहुकालो वोलीणो, जम्हा एयस्स धीरहिययस्स । दुसहमलाइपरीसहमहियासंतस्स हियएण ॥ ३० ॥
यथा-प्रविशसि कथं ? तिष्ठ द्वारेऽप्यशौच-मलीमस ! प्रतिदिनमहो पाखण्डिभ्यः सुखं न लभामहे ।
इति कटु रटच्चेटीदिष्टाः सुभक्षमवेक्षितुम् , गृहमुपयतो धन्यस्यैता गिरः श्रवणामृतम् ॥ ३१ ।। सो धन्नो कयपुन्नो, जं कित्तइ इय सयं जएक्कपहू । एवं परिभावितो, जहागयं पडिगओ कण्हो ॥ ३२ ॥ पविसंतेणं तेण INI
॥ १९०॥ K| य, पुरीए दिट्ठो कहिंपि दिव्ववसा । भिक्खं भममाणो उच्चनीयगेहेसु महप्पा ॥ ३३ ॥ तो दूराउ च्चिय करिवराउ ओयरिय पर
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