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उपदेशमाला विशेषवृत्तौ ।
अलाभपरि षहे ढंढणमुनि कथा।
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सुरवइ आएसेणं, वेसमणेणं विणिम्मिया महई। वारवई आसि पुरी, मणिकंचणचारुपासाया ॥१॥ सुरसेणाणंदिमहंतामरसायत्तजयसिरि जीसे । सरवरनिउरुंब पिहु, सुरवइविजयप्पयाणं व ॥ २॥ कयनेमिजिणुत्तं, सो सरसनिरंतरमहीरुहावासो । परि. सरवसुंधराए, केलिगिरि जीए उजितो ॥३॥ तीए दसारसीहो, अहेसि भरहद्धभूसणो राया। कण्होत्ति आसि तस्स य, तणुब्भवो ढंढणकुमारो ॥४॥ स्वविणिज्जियमारो, कलाकलावस्स पत्तपरपारो। नवलवणिमाए सारो, विहियवरोदारसिंगारो ॥५॥ उव्वाहिऊण निव्वणउठवण-जोव्वणगुणाओ तरुणीओ। विसयसुहमणुहवंतो, ताहिं समं गमइ सो कालं ॥६॥ अह अन्नया कयाई, समिय असेसंगिवग्गउम्मग्गो। देहप्पहाहि दिसि दिसि, कुवलयपयरं व विकिरंतो ॥ ७॥ अट्ठारससहस्सेहि, सीलंगाणं व पवरसाहूणे । सहिओ सहिओ व्व सुधम्मधारिजूयारवारस्स ॥ ८॥ भयवं अरिटुनेमि, गामाईसु कमेण विहरतो। संपत्तो वारवई, समोसढो रेवयउजाणे ॥ ९॥ अवगयजिणिंदआगमण-वइयरे सहरिसे समागंतु । कण्हप्पमिइमहीवइविंदे नमिऊणमुवविटे ॥ १० ॥ जयपहुणा पारद्धा, धम्मकहा अमयसारणीसारा । सम्मत्तमूलनिम्मलमूलत्तरगुणगणगभीरा ॥ ११ ॥ जहा-" जाव न जरकडपूयणि सव्वंगिउ गसइ, जाव न रोगभुयंगु उग्गु निद्दउ डसइ ।
ताव धम्मि मणु दिजउ किजउ अपहिउ, अज्जु किं कल्लि पयाणउं जिओ निच्चु प्पहिउ ॥ १२॥" धम्मु रम्मु सचराचर जीवह दय सहिउ, अरु गुरु नियघरघरणि सुरय संगमरहिउ । उज्झिय विसयकसाउ देउ जो मुक्कमलु, एहु लेहु रयणत्तउ चिंतियदिन्नफलु ॥ १३ ।। दय किजइ जंपिज्जइ सच्चउं पियवयणु, न हरिजइ निहणिज्जइ दुजउ जगि मयणु ।
न परिग्गहिगहु किजइ सजिज्जइ करणु, सिवसुहु तो पाविजइ निज्जियजरमरणु ॥ १४ ॥ इय जयपहुणो सद्धम्मदेसणासारमायरेणं सो, सुणिऊणं पव्वईओ, गुणसारो ढंढणकुमारो ॥ १५ ॥ बारस वि भावणाओ,
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॥ १८९॥