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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
जम्बूचरित्रे
॥ १७३ ॥
जाहि तो होउ फलसिद्धी ।। ९८ ।। पेक्खर अक्खलियअखुद्धलद्धलक्खो खणेण तत्थ गओ । दुग्गादेवीए पुरो, निविट्टमेगं महाजोगिं ॥ ९९ ॥ रतंदणमंडलपासदिन्नमाणुसवसा पईबोहं । मंडलपुरओ पुरिसं च रत्तकणवीरमालाए । ६०० ॥ पच्छाहूत्ते बाहू, सुबंधबद्धे करितु पक्खित्तं । उग्गीरिऊण खगं जावंते जंपए जोगी ॥ १ ॥ तुह देवि ! मए दिनो, अन्नबली एस होउ मंसबली । कुमरेणुत्तो तो सो, रे रे काउरिस ! किं कुणसि ॥ २ ॥ किं निरवराह संजमिय, अंगुवंगं निहीण ! हणसि धुवं । बंधणरज्जुं छिंदे, अन्नहा नत्थि ते जीयं ॥ ३ ॥ इय भणिओ सो वरसेणसम्मुहो वलइ खम्गवग्गकरो । सोवि उवेइ विकोसी, काऊण करालकरवालं ॥ ४ ॥ अइगरुयलग्ग संजुगरंगेणं तेण पिल्लिऊण लहुं । जमपासे पट्टविओ, सो जोगी पावपडिहरुछो ॥ ५ ॥ खम्गेण खंडिऊणं, कुमरो संजमणरज्जुमुवविसियं । पुरिसस्स पुरो पुच्छर, को एसो कम्मचंडालो ॥ ६ ॥ भणियमणेण एसो, नामेण मघोरघंटजोगिंदो । दाडं दुग्गाए बलि, सिद्धिकए अहमिहाणीओ ||७|| एयाहिं पाउयाहिं, चडिओ हिंडेइ तिहुयणं सयलं । पुरिसं विसज्जियं कुणइ, पाउया सो सपाएसु ॥ ८ ॥ हुंकारिऊण पाडलिपुत्ते पत्तो तओ खणेणं सो । देसंतराओ दव्वं, आहरईपायारूढो ॥ ९ ॥ चिंतेइ कवि केणइ, मिसेण जइ नाम कुट्टणिं दूरे । नेउं मिल्लेमि महुं, पियामि निम्मच्छियं ताहं ॥ ६१० ॥ स कयाइ चंगसव्वंगसंगि सिंगारसुंदरी होउं । तेण पहेणं चंकममाणो तीए सयं दिट्टो ॥ ११ ॥ चिंतियमेयाए पुणो वि, दव्वमेणुवज्जियमणंतं । ता कवडेणाणेउं मागहियाए समप्पेमि ॥ १२ ॥ दासीहिं जाव हकारिओवि नोवेइ कुट्टिणी ताव । तं गंतूणं आणइ कहवि बाहाए घेतूण ॥ १३ ॥ इय तुज्झ पुत्त ! जुत्तं वृत्तं अकहंतओ गओ जमिओ । तद्दिवसाओ जाया, गहगहिया अहह मागहिया ॥ १४ ॥ भणियमणेणं माए ! मा कुप्पसु कज्जगरुययाए गओ । अहुणा पुणो वि पत्तो, आएसं देसु किं कुणिमो ॥ १५ ॥ देइ पुणो सो दव्वं, समग्गलं मग्गियाओ निच्चपि । तो सा चमकिया चिंतवेइ कत्तो धणमणत्वं ॥ १६ ॥ तो भणिया मागहिया, वच्छे ! पुच्छेसु अज्जणोवायं । भणइ मा माए ! तुज्झ, लग्गिया किं पुण अलच्छी ॥ १७ ॥ जइ वारिया न अच्छसि पुच्छसु सयमेव ता तुमं अम्मो । नियमेवेदं तं सच्चवेसि लोहाला नामं ॥ १८ ॥ जइवि रइरमणजत्ता, पत्ता
अतिलोभे
लोहर्गला
गणिका
कथा |
॥ १७३ ॥