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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ
जम्बूचरित्रे
॥ १७१ ॥
वित्तममरसेणस्स | पियबंधव ! लिज्जउ रज्ज - लाभसज्जं रयणमेयं ॥ ५९ ॥ कहिओ विहि जहत्थो, सवित्थरो थिरमणेण कायव्वो । फलसिद्धीए एयरस, लाभवुत्तंतमक्खिस्तं ॥ ५६० ॥ अह एगंते साहारवीहियाए गओ स हरिसेण । पुज्जिय पणमिय पत्थे, पत्थवत्तं सुथिरचित्तो ॥ ६१ ॥ विहियपहाणविहाणो, कयाऽवहाणो सयपि वरसेणो । नियरयणाओ मग्गइ सामग्गिं भोयणाईणं ॥ ६२ ॥ पयडीहूया तो अच्छराओ तत्थsट्ट लट्ठरूवाओ, निम्मियनिम्मलसुविसालचउसालसोहाओ । अभंगअंगमद्दण उव्वट्टणण्हाणभूसणाईहिं, सम्माणिऊण निवं सावयंति देवगवत्थाई ॥ ६३ ॥ अइसरसपाणभोयणतंबोलपसूणपभिइ दाऊण । कत्थइ सव्वंपि खणेण तं गयं इंदयालं व ॥ ६४ ॥ भुत्तत्तरं पसुत्तो, जावऽच्छ ताव वच्छछायाए । जेटुकुमारो ता तत्थ, पंच पत्ताइं दिव्वाइं ॥ ६५ ॥ पाडलिपुत्ते पत्ते, पंचत्तं पत्थिवे अपुत्तंमि । गयहय चामर - दुंदुहि-छत्ताई पउरजुत्ताई ॥ ६६ ॥ अहिसिंचिऊण कलसेण, गुलगुलेउण मयगलो खंधे । आरोवेइ कुमारं हओ विहि णिहिणइ हरिसेण ॥ ६७ ॥ विमलाओ चामराओ, ढलंति वज्जेइ दुही पुरओ | वित्थरियमत्थयत्थं, संजायं सेयछत्तंपि ॥ ६८ ॥ भडचडगरेण महया, पविसेइ पुरस्स मज्झयारंमि । पणमिजंतो सामंतमंतिमंडलियलोएण ।। ६९ ।। नीहरिओ वरसेणो, तत्थावसरे गओ पुरस्संतो । निवकज्जेसुं पज्जाउलस्स किं मज्झ सोक् ।। ५७० || अइचिरमेस गवेसाविओ वि सव्वत्थ जाव नो दिट्ठो । ता पत्तो पासाए, सो सज्जइ रज्जकज्जाइ ॥ ७१ ॥ अतिलोभे लोह लागणिका कथा – इयरो मागहियाए गणियाए गओ गिमि सयणोव्व । सयमेव ताव तीए, गंतूणन्भुवगओऽभिमुहं ॥ ७२ ॥ विहियविविहोवयारा, मागहिया अवहरिंसु से हिययं । लोहग्गलाए अक्काए, मग्गियं पूरइ इमो वि ॥ ७३ ॥ भणिया धूया लोह गलाए धणमस्स एत्तियं कत्तो । न हु देइ कोइ न कयाइ, कुणइ सेवाइववसायं ॥ ७४ ॥ ता जामाइयमापुच्छिऊण वच्छे ! सुनिच्छिय कुणसु । भणइ इमा ते कज्जं, दव्वेण किमेय चिंताए । ७५ ।। लोहग्गलाए अइअग्गलाऽऽगहाउ इमाए सो पुट्ठो । पण रयणाउ पिये ! मे चिंतियरिद्धिसंसिद्धी ।। ७६ ।। लोहग्गलाए कहिए, तीए जोएइ जु (त्त ) न्नमंजारी । तं रयणं सा घेतुं, सुत्तपमत्ताइ तस्स छलं ॥ ७७ ॥ अह मज्जणोवविट्ठस्स, तस्स चेलंचलस्स गंठीओ । छन्न छोडिय घेत्तूण, तीए तं गोवियं रयणं
अतिलोभेलोहर्गलागणिका
कथा ।
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