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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ| जम्बूचरित्रे
अमरसेनप्रवरसेनभ्रात्रोःकथा ।
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द्वारं द्वारं दरिद्रो वरमुदरदरीपूरणाय प्रवृत्तो, मानी धीमान् सनाथो न पुनरनुदिनं तुल्यकुल्येषु दीनः ॥ ५४०॥" एएणेव छलेणं, गच्छामो हच्छमेव ता एत्तो। न फलाण वणे वुड्ढी, खलंगुली दंसीया णसिया ॥४१॥ " नियपुन्नाण परिक्खा वियक्खणतं जणाण ववहारे । भासावेसविसेसाऽवगमो य न होइ नियदेसे ॥ ४२ ॥” इय चिंतिऊण रत्तीए, दो वि ते निग्गया निरुव्विग्गा । इय वुत्ततं कस्सवि, अकहंता नियजणस्सावि ॥ ४३ ।। अइतुरियतरपयारा, अक्खंडपयाणएहिं ते पत्ता । अइगरुयाए एगाए, भीम| रुवाए अडवीए ॥४४॥ दावेइ न बहुया, सुल्लासं जा सासुयव्व दुट्ठमणा । वरवणमालासोहाए, सूहवा विण्हुमि(मु)त्तिव्व ।।४५॥ दीसंति चित्तसीहा, मयमिहुणालंकिया नहसिरिव्व । सारंगमारणुज्जयपुंडरियक्खा हरिकहव्व ॥४६॥ तत्थेगस्स महावडतरुणो छायाए वीसमंतस्स । कुमरस्स अमरसेणस्स, आगया झत्ति सुहनिदा ॥ ४७ ॥ वरसेणो पायंते, पाए संवाहए सुनिसण्णो । जागरमाणस्स भयं च, भीमसत्ताहि नहु होइ ।। ४८ ॥ अह वडवासीजक्खो, निरिक्खए लक्खणाई सुत्तस्स । चिंतइ किजंतो होइ, बहुगुणो एत्थ उवयारो ॥ ४९ ॥ उवयारो किज्जइ सज्जणेण सव्वत्थ नत्थि संदेहो। चिंतेयव्वं एयं तु, किंतु कत्थेस वित्थरइ ॥५५० ॥ " अहिमुहसिप्पिमुद्देसुं, अप्पेइ पयोहरो पयं जुगवं । एगत्थ विसं अन्नत्थ, मोत्तियं तं पुणो होइ ॥५१॥" वर. सेणो वि हु मा पंतिवंचिओ होउ पुन्नपुरिसोत्ति । परिभाविऊण जक्खो, पच्चक्खो भणइ वरसेणं ॥५२॥ अतिहीण दूरदेसा| गयाण तुब्माण किंचि उचियमहं । इच्छामि काउमिय तस्स अप्पए दोन्नि रयणाणि ।। ५३ ॥ एगेग ताण रज, सिज्झइ अन्नेण
इच्छिया लच्छी। पढमं अप्पेयव्वं, सबंधुणो तुज्झ चेवन्नं ॥५४ ॥ पूइत्तु पणवमायासाहाहिं सत्तवार जवियाहिं । पणमित्तु पत्थियऽत्थस्स, होइ सिद्धी न संदेहो ॥ ५५ ॥ रयणा पडिच्छिया ते, दूरावज्जियसिरेण पंजलिणा । वरसेणेणं चेलंचलस्स गंठीए बद्धा य ॥५६॥ अंतरहिओ सुरो तो, खणंतरे उदिओ अमरसेणो। तिहिं वासरेहिं तो सा, महाडई लंघिया तेहिं ॥ ५७ ॥ पाडलिपुत्ते पत्ता, तप्परिसरसरवरस्स पालीए । विहियंगपायसोया, चूयतले वीसमंति सुहं ।। ५८॥ तव्वेलं चेव कणीयसेण
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॥ १७०॥
१ धृत्या।