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उपदेशमाला-6 विशेषवृत्ती जम्बूचरित्रे
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अमरसेण-प्रवरसेन-भ्रात्रोः कथा-कंचणपुरंमि कंचणसेहररायस्स आसि दोन्नि सुया । नामेण अमरसेणो, पढमो बीओ पवरसेणो ॥ २३ ॥ ताण पसायपरेणं, पिउणा जयकुंजरो कयाइ पुरा । दिन्नो आसि सया वि य, चडिया ते तत्थ कीलंति ॥ २४ ॥ जह
अमरसेनउदयं तस्स नराहिवस्स कस्सइ जसो पयावो य । दोय सुकुलुग्गयस्स अहवा, ववसाओ सुकयजोगो य ॥ २५ ॥ तह कुसुमसरस
प्रवरसेनमाणे, ते रममाणे सुदंतिणा तेण । पेच्छंती मच्छरमुव्वहेइ सावकिया माया ॥ २६ ॥ वारं वारं रत्ति, दिवा य कन्ने खणेइ
10भ्रात्रोःकथा । नरवइणो। सामिय ! सुयस्स मज्झं, दिजउ जयकुंजरो एसो ।। २७॥ किं किज्ज(इ)उ तुह वल्लह, देह पसाएण अहव चारण । एत्तियमेतपि न होइ अम्ह ता कूडनेहोऽसि ॥ २८ ॥ वियसंतरोसधूमंधयारधूसरमिमं मिसिमिसंतं । दळूण भणइ राया, एवं कह होइ कयाइ ॥ २९ ॥ भत्ता सत्ता जुत्ता, पुत्ता ते किं न अप्पणा दिन्नो। कह मग्गिज्जइ स गओ, तं देमि जमन्नमाएससि ॥ ५३०॥ कुग्गहराहिलं महिलं, नाऊण नाराहिवो मयणमूढो । भणइ कुमरे करिंद, अप्पह मह देमि दस करिणो ॥३१॥ नाऊण चुल्लमायाए, चेट्टियं सुठु निठुरं एयं । चितंति ते वि एवं, धीदुच्चरियं महेलाणं ॥ ३२ ॥ नियमाइनिव्विसेसेण, गउरवेणं वयं निएमो तं । नियसुयवच्छलयाए, सा णे जाणेइ रिउणो व्व ।। ३३ ॥ करिणो सिणीहिं वग्गाहिं, वाइणो गोणया वि नत्थाहिं। कीरति वसे पुरिसा, मराललीलाहिं महिलाहिं ।। ३४ ॥ ता माणी ता जाणी, वियक्खणो ताव सज्जणो ताव । जाव घरट्टोव्व नरो, न भामिओ दुद्रुमहिलाहिं ॥ ३५ ॥ तिहुयणु सयलु जि पेक्खहिं अंखिहिं, लक्खहिं गयणि मग्गु जे पंखिहिं । जलपरिमाणु जि सायरि बुज्झहिं, तरुणिचरित्ति ते वि निरु मुज्झहिं ।। ३६ ॥” अहवा सव्वं सोहेइ, सुंदरीणं असुंदरीहाणं । ताओ वि नाम एवं, करेइ अव्वो महच्छरियं ॥ ३७ ॥ दस देइ मत्तदंती, जइ नाम तहावि तेहिं कि कजं । माणपणासे पुरि-10 साण, होइ कोडी वि तिणतुल्ला ॥ ३८ ॥ माणि पणदुइ जइ न तणु, तो देसडा चएज । मा दुजणकरपल्लविहि, दंसिजंतु भमेज ॥ ३९॥ तथा-"पुण्येऽरण्ये पुरे वा सितघनच्छन्नपाली कपालीमादाय 'व्यायसज्जद्विजहुतहुतभुग्धूमधुम्रोपकण्ठम् ।
१ वनवसनच्छन्न B. C. घनवसच्छन्न DI २ न्या DI
कीरति वसे पुरिता
लाहिं ॥ ३५ ॥ ति
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॥ ३६॥" अहवा
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