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मकरदाढावेश्याकथा ।
उपदेशमाला-0
जयंतीए घणावहो सत्थवाहो तस्स सुधणो नाम विहियविणओ तणओ। सो य सयलकलावपारावारपारीणो जाणिऊण पिउणा
पेसिओ पराए रिद्धीए ववहारत्थमुज्जेणीए । तत्थ विविहं ववहरमाणो कयाइ कामपडायाए नाम निग्गयाए वेसाए पत्तो पासाए । विशेषवृत्ती
तीए य तेहिं तेहिं पयारेहिं तहा विहिओ जहा थेवदिवसेहिं जाओ तम्मओ। जन्नुज्जाणियाइ कजसज्जाए य महामायाए मयरदाजम्बूचरित्रे ढाए अक्काए कमेणमाणाविओ सव्वंपि दव्वं सपासाए । अवहरियसव्वसारो जाओ त्ति जाणिऊण दिवो अक्काए अवन्नाए । का॥१४४॥
मपडायाए पासाए पवेसंपि अपावमाणो गलियाभिमाणो निग्गओ गेहाओ। चितेइ य । नेहनिहाणं तीए लक्खा मुद्दाहिं मुद्दियंपि मए भरियंपी तहा जायं, (हा) ही रित्तं झत्ति कत्तो,वि ॥८९।। नेहेण व देहेण व, दव्वेण व अप्पिएण सव्वेण । कस्सवि न होइ एसा, वेसा वेसत्ति जुत्तमिणं ।। २९० ॥ जुत्तं च बुत्तं केणवि-“अन्नु खाइ अन्नु गलि लग्गइ, अन्नु जंतु वेपन्नई मगइ । कुडिलकालकोमलघणकेसहि, नालियमनपत्तिज्ज(सि)हि वेसहि ॥ ९१ ॥” अंखिहि रोयइ मणि हसइ, जणु जाणइ सउ सच्चु । वेस विसिट्ठह तं करइ, जं कट्ठह करवत्तु ॥ ९२ ।। जं कह करवत्तु करइ, खरदंतखिवंतउ । तं जि विसिटुह वेसलोउ, कवडिण जंपंतउ ॥ ९३ ।। जणु जाणइ सउ सच्चु मूदु परमत्थु न जोयइ । हियइ मुलुक्कहि हसइ, वेसओ अंखिहि रोयइ ॥ ९४ ॥ परिवारेण हक्कारिजंतो वि लज्जाए जयंतीए जाइउं न पारेइत्ति । गासवासाइ मेत्तंपि अपावितो परिवारो धणावहस्स पासे ॥९५।।
असेसो वि वुत्तो, वुत्ततो पुत्तस्स अइदुहिओ धणावहो आहेसु । अच्छउ दूरे दुरप्पा किं तेण, वेसावसणिणा परिभणियं परि| वारेण ॥ ९६ ॥ अविनीतेष्वपि विमुखाः, सन्तो नो स्वोपजीवकेषु स्युः । वत्सव्यथितेऽप्यूधसि, सुरभि!त्क्रमयति क्षीरम् ॥२९॥ तओ चितियं तेण-अवसोत्तपत्तं सित्थंपि व दव्वमेयं मयरदाढाए गिलियं कह वालेयध्वंति, लद्धोवारण अंतरंगपुरिसे पेसिऊण कयसम्माणो मन्नावेऊणमाणीओ अप्पणो पासे पुत्तो। पञ्चइयपुरिसे सहाए दाऊणमइघणधणरिद्धिसमिद्धो काऊण, कन्ने किंपि कहेऊण पुणोवि पेसिओ अवंतीए । अप्पिओ सुसिक्खिओ मक्कडो एगो । सो य जावइयं दव्वं गिलावेऊण मुच्चइ मग्गिओ तावइयमप्पेइ । तत्थ पत्तो ववहरमाणो अइधणड्ढो सुधणो नाऊण निवेइओ मयरदाढाए दासीहिं विविहउत्तिजुत्तिभत्तिहिं मन्ना
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॥ १४४॥