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उपदेशमाला
विशेषवृत्तौ जम्बूचरित्रे
॥ १३० ॥
।। ७६ ।। ता जावऽज्जवि जज्जरइ, नो जरा देहपंजरं ताव । अइउज्जमेण जुज्झइ, मह पव्वज्जा पवज्जेउं ॥ ७७ ॥ इय चिंतिऊणमणगारसामिणो अमयसागरगुरुस्स । पयमूले पव्वईओ, बहुपत्थिवपुत्तपरिवारो ॥ ७८ ॥ सुयसागरपारीणो, पावइ पावक्खएणमोहिवरं । नियचरणं चरमाणो, चरणे परिचरइ सुगुरूण ।। ७९ ।। चविय भवदेवदेवोव, तंमि विजयमि वीयसोगाए । पउमरहरायवणमालदेविअंगुब्भवो जाओ ॥ ८० ॥ कय सिवकुमारनामो, अभिरामो जोव्वणुब्वणगुणेहिं । समवयरूवाहिं कुलुब्भवाहिं सह. रमइ रामाहिं ।। ८१ ।। पुरनगरागरगामाभिराममहिमंडलंमि विहरंतो । सागरदत्तऽणगारो, पसमाऽऽहारो तहिं पत्तो ॥ ८२ ॥ जाणा उग्गहत्थं जणाणमुज्जाणे । समवसरिओ स वरिसेइ, देसणा अमयधाराहिं ॥ ८३ ॥ मासकखवणं काऊण, पारणा तेण सत्यवागिहे । विहिया हियावहेणं, जणाण पडिया य वसुहारा ॥ ८४ ॥ निसुणिय पारणपञ्चप्पवंचपंचप्पयारदिव्वाई । सागर सुसाहुसेवा-सूवहिय पणमेइ सिवो ॥ ८५ ॥ तिपयाहिणपुव्वं, पायपंकए पणमिऊण पुरओ से । उवविसिउणं सद्धम्मदेस
मरसं रसइ ।। ८६ ।। चउदसपुव्वी सो ओहिनाणवं केवलि व्व सव्वहियं । जिणधम्मरम्ममम्मं, गंभीर गिराए बाहरइ ||८७ || जं निरवाओ काओ, अभिरामाओ सकामरामाओ । अहिलसियकज्जसिद्धी फलमेयं पुव्वधम्मस्स ॥ ८८ ॥ फलपज्जेते एयरस जइ जिओ अज्जिणे नवनवं । गयपाहेओ पहिओ व्व, तो स सोएइ परलोए ॥ ८९ ॥ विसय - कसाय - पमायप्पिसायमविसायमुज्झिऊण तओ । सयलसमीहियसज्जे, संजमरज्जे समुज्जमह ॥ ९० ॥ सिक्खियसिक्खादिक्खा, खणेण उक्खणियतिक्खदुखाई । रोवेइ जीवथाणेसु, सग्गमोक्खाण सोक्खाई ।। ९९ ।। रिसिमवसरंमि सो विन्नवेइ हरिसूससंतरोमंचो । मह तइ दिट्ठे उट्ठेइ, सुठु
पुट्ठी ॥ ९२ ॥ तो कोवि पारभविओ, किमत्थि तइ मज्झ सयणसंबंधो। अह परिभावियसन्भूय, ओहिणा भणइ मुसहो । ९३ ।। पत्तो तं तइयभवे भवदेवो आसि मज्झ लहुभाया । जंबुद्दोवगभरहे, अकवडपडिबंधपडिबद्धो ॥ ९४ ॥ मह अणुवित्त, गहियवओ पालिऊण पव्वज्जं । जाओ सोहम्मसुरो, अहंपि तत्थवि थिरसिणेहो ।। ९५ ।। पुव्वभवब्भासाओ, मइ तुह सो संपयंपि पक्खुभिओ । मह गयरागस्स पुणोऽगुग्गहबुद्धी न उण नेहो ॥ ९६ ॥ भणइ कुमारो भयवं, अवितमेयं
शिवकुमार
स्य सागर
दत्तमुनि
समागमः ।
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