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उपदेशमाला विशेषवृत्तौ जम्बूचरित्रे
| भवदेवस्य सागरदत्तत्वेनोत्पत्तिः
॥ १२९॥
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| मुणिणा तिक्खाइं वितिक्खियाई दुक्खाई गुत्तिगेण तए । जइ भावगुत्तिगो सहसि, ताई ता जयसि अहुणा वि ।। ५८ ॥ एत्तियदिणाणि दिक्खा, दवेणऽजवि कुणेसु भावेण । अणुचलियावि हु अइवेगगामिणो हुंति किं न पुरो ।। ५९ ॥ ता जाहि सव्वहा उव्वहाहि भावेण चारुचारित्तं । आलोइय दुश्चरिओ, सिरिसुट्ठियसूरिपासंमि ॥ ६०॥ अयंपि साहुणीणं, पासे पव्वजमणुचरिस्सामि । इय तीए सिक्खिओ सो आउट्टो भणिउमाढतो ॥ ६१ ॥ अइ साविगे! सुमग्गो, उवइड्रो सुठु सुठु तुदोऽहं । निरु निरयअंधकूवे, निवडतो ताइओ तुमए ॥ ६२ ॥ तं मह सहोयरी होसि, साविगे! गरुयरागभंगाओ। निम्माए य माया वा, निरयाइअवायरक्खणओ ।। ६३ ।। अहवा गुरुणी निस्सीमरम्मधम्मुज्जमप्पयाणाउ । ता ताव जामि एत्तो, तइ कहियत्थं समत्थेमि ॥ ६४ ॥ इय भणिय वंदिऊण, निप्पडिमाओ जिणाण पडिमाओ। भवभमणभूरिभीरू, भवदेवो सगुरुमल्लोणो ॥ ६५ ॥ आलोइय पडिकतो, सुतिव्वतवतावतावियसरीरो। पंडियमरणं आ(रो)राहिऊण सोहम्मसुरलोए । ६६ ।। सोहम्मकप्पपहुणो, जाओ सामाणिओ समाणजुई। दिव्वाइं कामभोगाई, भुंजए जावजीवपि ॥ ६७ ।। अह स भवदत्तदेवो, चविऊणं पुक्खलावईविजये । पुंडरिगिणिनयरीनाहवइरदत्तस्स चक्किस्स ॥ ६८ ॥ कुक्खीकुसेसयंके, कलहंसो विव जसोहरपियाए। आयाओ जाओ जलहिमजणे डोहलो समये ॥ ६९ ॥ सागरसरिसाए महानईए सीयाए सा महिड्ढीए । अवणीयडोहला चक्किणा, कया सह सयं गंतुं ॥ ७० ॥ पसवइ सुमुहुत्ते भूवलक्खअक्खूण लक्खणं तणयं । विहियं डोहलयाओ, सागरदत्तो त्ति से नामं ॥ ७१ ॥ उवचयमुवजाइ दिणे, दिणे य देहेणमविकलकलाहिं । परिणइ पसन्नलावन्नवन्नपुन्नाओ कन्नाओ ॥ ७२ ॥ अभिरमइ तारतारुन्नपुनदेहाहिं ताहि सह निच्चं । पासायगओ पासइ, कयाइ सरयमि मेहमयं ।।७३।। कामकुसुमाणुगारी, होऊण कमेण पसरमाणो य । सरयघणो संजाओ, कलियखमंडलमहाभोगो ॥ ७४ । असरिसपसरियपवमाण-पेल्लणुव्वेल्लमाणसव्वंगो। पसरणकमेण होऊण, खंडखंडाइओ नदो ।। ७५ ॥ इय जलहरोव्व अव्वो, अथिरो रज्जाइवित्थरो सव्वो। खणदि दुमिटुनटुं, धणजीवियजोव्वणाईयं
१ ति । २ जह सि B, जायसि DI ३ य B| ४ दिनदृघि B| दिवनद्वमिदं DI
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७ ।। १२९॥