________________
उपदेशमाला - विशेषवृत्तौ
जम्बूचरित्रे
॥ १२६ ॥
सुहचित्तो, सोहम्मे सुरवरो जाओ ॥ २८ ॥ अवरो वि महपिया सा, अहंपि तीसे पियो त्ति घोर्सितो । स गओ सुग्गामम वसेवंधण नीरपूरोव्व ॥ २९ ॥ मह विरहदहणदाहेण, दीणदेहा हहा वराई सा कह नायव्वा उव्वाह - कालमुक्का नवे पेम्मे ।। ३० ।। इय चिंतितो चेइयहरस्स चिट्ठइ दुबारदेसे जा । ता गामाउ एगा, उबागया इत्थिया तत्थ ॥ ३१ ॥ पूओवगरणपडलगपाणीए बंभणीए अणुसारिया । साहु त्ति वंदिओ पुच्छिओ य दोहि वि सुहविहारं ॥ ३२ ॥ पुच्छियमिमेण मे कहसु, साविगे ! अज्जवंति रट्ठउडो । जीवेइ रेवई तह ताण वहू नागिला सा य ॥ ३३ ॥ चिंतियमेयाए कयाइ, होज्ज एसो स जेण ऊढाहं । पुच्छामि ताव एयं किं तेहिं पओयणं तुज्झ ॥ ३४ ॥ अयमाह अहं अज्जव - रेवइ अंगुब्भवो नणु कणिट्टो । भवदेवो नामेणं, परिणीया नागिला य मए ॥ ३५ ॥ पियनियबंधवभवदत्तसाहुउवरोहओ मए विहिया । एत्तियदिणाणि दिक्खा, तमकयमुहमंडणं मोत्तुं ।। ३६ ।। भवदत्तो संपत्तो, संपइ सुरलोयमहमिहं तत्तो । तम्मुहकमलालोयणलालसहियओ समायाओ ॥ ३७ ॥ भणियमिमीए मयाणं, मायापियराण तुह बहुकालो । जीवइ अज्जवि सा नागिला उ सहिया महं चैव ॥ ३८ ॥
भव - तो तीए तुमं सव्वं, मुणसि सरूवं ति किंपि पुच्छामि । किंरूवरूवलावन्न वन्निया किंवया तह सा ।। ३९ । श्राविका - जारिसियाऽहं दिट्ठा, तारिसिया सा न विज्जइ विसेसो । किं तीए कायव्वं, अव्वो तुह चारुचरणस्स ॥ ४० ॥ भव—परिणेऊणं तक्खणमेव, विमुक्का मए वराई सा । श्राविका – सुकएहिं तीए मुक्का, भवविसवल्ली तओ सुक्का ॥ ४१ ॥ भव - सुहसीलसमायारा सा किं पालेइ सावयवयाई । श्राविका - पालइ न केवलं, अप्पणा हु पालावइ परंपि ॥ ४२ ॥ भव—अणवरयमेव सुमरामि, तं जहा मं तहा णु किं सा वि । श्राविका - साहु वि तुमं भुल्लो, सिवमग्गे सा वि किं तुला ॥ ४३ ॥
१ अपगत सेतुबंधनो नीरपुर इव ।
भवदेवनागिलाप्रश्नोउत्तराणि ।
॥ १२६ ॥