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उपदेशमालाविशेषवृत्तौ| जम्बूचरित्रे|
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वा थिरनेहो कि न पव्वयइ ॥९॥ भणियमणेण सिणिद्धो, लहुभाया तुह वि अत्थि भवदेवो । पेक्खिस्सामो पत्ते, तुमंमि तं पव्वइस्संतं ॥ १०॥ भणियं भवदत्तणं, जइ विहरिस्संति तत्थ भयवं तो। किंबहु बजरिएणं, तमिक्खसे दिक्खियं चेव ॥११॥
भवदेवदीक्षा। अह विहरंतो सूरीहिं, सह गओ सो कयाइ मगहाए। सन्नायगाण वंदावणथमणुजाणिओ गुरुणा ॥ १२॥ पत्तो सुगामगामे, भवदेवो सो तया य परिणीओ। नवपरिणीयाए नागिलाए मुहमंडणं कुणइ ॥१३॥ भवदत्तं दळूणं, तुद्वा माया पिया नाईओ। अइभूरिभत्तिभरनिन्भरा य पाए पणिवयंति ॥ १४ ॥ मुणिणा वि धम्मलाभ, दाउं सव्वेसिं तेसिं आपुटुं । सीलब्बयाण णावाह साहणं धम्मनिव्वहणं ॥१५॥ आपुच्छिया य ते तेण, जामि वीवाहवाउला तुम्भे । पडिलाभयंति तो कप्पणिजभोज्जेहिं भवदत्तं |॥१६॥ नववहुमुहमंडणवावडोवि पणमित्तुमेमि एसो त्ति । भणिऊणमेइ पणमेइ, मुणिवरं झत्ति भवदेवो ॥१७॥ पत्तं पाणिमि
समप्पिऊणमेयस्स सो मुणी चलिओ। नियए उवस्सए सव्वनाइअणुगम्ममाणपहो ॥ १८ ॥ चलिओ महिलावग्गो, पढम कइवयपयाई अणुलग्गो। पुरिससमूहो पच्छा, पणमिय पणमिय पडिनियत्तो ॥ १९॥ भवदेवो वि समीहेइ, भाउणा भासिओ 10 नियत्तेउं । असमत्थियमुहमंडणसमत्थण(उ)त्थं नववहूए ॥ २० ॥ विविहपएसे दंसेइ, रमिय चिरं वयमिओ नियत्तता । जइ कहवि करेइ करे, पत्तं तत्तो नियत्तामि ॥ २१॥ सुणमाणो वयणाई, तस्स मुणी गुरुसगासमल्लीणो। भणियं मुणीहिं अणुओ, किमज दिक्खिस्सए एसो ॥ २२ ॥ मंडिय ढिकिय सिंगारियं गओ जं तए सहाणीओ। भणियं भवदत्तेणं, किमन्नहा होइ मुणिवाणी ॥ २३ ॥ सूरीहिं पुच्छिओ वच्छ ! अवितहं इय किमाह तुह भाया। उवरोहेणं तेणवि, भणियं जं भणइ भाया मे ॥२४॥ पडिवज्जिय पव्वज्जो, सज्जो जाओ जई सलज्जाए । धरइ नवं पवज्ज, तणुणा हियएण पुण भजं ॥ २५ ॥ परियाय पारियायप्पसूणमालाए सह वहंतो तं । धरइ वराओ एगत्थ, पंचगव्वं च मरं च ॥ २६ ॥ तणए चिरायमाणे, जणयाई जोइऊण जणनिवहो । घरमागओ वियाणइ, भवदेवो दिक्खिओ नूणं ॥ २७ ॥ चिरपालियपव्वजो, काले काऊणमणसणसमाहिं। भवदत्तो,
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