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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः ॥ १२०॥
खोलोलुपिसुवर्णकारः।
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तं तमीहेइ ।। २१ ॥ पंच सुवन्नसयाई दाऊण पिऊण परिणयं कुणइ । इय पंचसया महिलाण मेलिया तेण नियगेहे ॥२२॥ पत्तेयं पत्तेयं सव्वासि परिग्गहमि पकरेइ । तिलगचउद्दसमाभरणचीणवसणाइयं किंतु ॥ २३ ।। जदिवसं जं भजं, उवभुंजइ तीए तम्मि चेव दिणे। कुंकुमकुसुमाभरणंसुयाई सो देइ निव्वि सयं ।। २४ ।। ईसाए नंगलीए, सल्लिओ नीहरेइ न गिहाओ। सुहिसयणतायभायाईयपि वारेइ घरमितं ।। २५ ॥ पियमित्तेणं कइयावि, ऊसवे भोयणाय भणिओ सो। बलिमड्डाए नीओ, अणिच्छमाणो वि करगहिओ ॥ २६ ॥ चितंति तओ ताओ, किमम्हमेएण जीवियब्वेण । संताणि वि भोगंगाणि, भुंजिउं जेण न लहामो ॥ २७ ॥ मणिरयणाणि(इ) निहाणेण, तेण पासदिएण वि न किंचि । उवभुंजिउ न लब्भइ, जं रक्खसजक्खकयरक्खं ।। २८ ॥ निम्मच्छियमि जाए, ता अज्ज चिराउ किज्जए कि नो । वसण-विलेवण-तंबोल-भूसणाईहिं सिंगारो ।। २८ ।। इय कयअणंगसव्वंगसंगिसिंगारभंगिचंगीओ । वयणं विलोयमाणीओ दप्पणे जाव चिटुंति ॥ १३० ॥ ता सो पत्तो पेक्खेइ, तक्खणा ताओ तारिसंगीओ। गहिऊणेक्कं कोवेण, ताव ताडेइ जाव मया ॥ ३१॥ नियपाणपहाणाऽऽसंकियाहिं सव्वाहिं ताहिं तो खित्ता । तदुवरि सव्वे वेगेण दप्पणा तेहिं सो वि मओ ॥ ३२ ॥ तं पिक्खिऊण तओ, परपच्छुत्तावतत्तचित्ताओ। एगत्तो मिलिऊणं, इय समेथिति समयन्नू ॥ ३३ ॥ अहह हयाणमम्हाणमागय दुटुचिद्वियं धिद्धी। पइमारियाण को नाम, मुक्खमिक्खिस्सए 'सक्खं ॥ ३४ ॥ जणकुलपइदिणपक्खिप्पमाणधिक्कारमग्गणगणेहिं । नियाणमम्ह होही, पाणपहाणं हि पच्छावि ॥ ३५ ॥ ता जावऽज्जवि जाणेइ, कोवि नेयारिसं महापावं । भरिऊणमिंधणाणं, घरं पलिवित्तु ता मरिमो ॥ ३६ ।। तह चेव कए अविरल-पज्जलिरानलकरालजालाहिं । जमजीहाहिं व दीहाहिं ताउ मूढाउ लीढाउ ॥३७॥ गिरिवरउवरिल्लीए, पल्लीए पल्लविल्लअणुतावा । एगूणा पंचसया, जाया चोरा महाघोरा ।। ३८ ।। पढममया सा जाया, दासेरत्तेण सोत्तियकुलंमि । अंतरिया एगणेव, जम्मुणा तिरियजाईए ॥ ३९ ॥ जायस्स तस्स पंचमवरिसंते सो सुवन्नगारो वि। तिरियभवंतरिओ तमि, दियकुले बेट्टिया जाया
१ सिउ-सिओ B 01 २ बेडिया-वेढिया।
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