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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
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॥ १४० ॥ तीए बालग्गाहो, सो दासो आसि सा उ रोयंती । न हु विरमइ पुव्वभवि व्व कामदाहेण डज्झती ॥ ४१ ॥ अह अंगुलीए चेडेण, चड्डिया मयणमंदिरदुवारे । सा थक्का रोयंती, तं चिय कुव्वंतओ दिट्ठो ॥ ४२ ॥ नियगेहाओ अइताडिऊण निग्घाडिओ दुजम्मेण। अइदुट्ठो सो (रु) तुट्ठो, तेणाणं ताण जा मिलिओ ॥ ४३ ॥ संतमसंमि समंता, संपत्तो कोसिओ सुही होइ। लहइ पइटुमरिट्ठो, अरिकाणणगओ संतो ॥ ४४ ॥ अणजायजोव्वणा कन्नगावि सा बंधइ धुरं धरइ । परिहरिया पियरेहिं, भमिरी गामं गया एवं ।। ४५ ।। पंचहिं चोरसएहि सो गामो तेहिं धाडिचडिएहिं । विहिओ लूसियसारो, तओ गया सावि सह तेहिं ॥ ४६ ॥ सव्वेसिं तेसिमेगा, जाया जा वहेइ सा हरिसं । परिभुज्जंती भुज्जो वि न जाइ पुण तत्तिं ॥ ४७ ॥ जलही जलाण दारुण पावए दावपावओ तित्तिं । अवरावराण पुरिसाण, नो पुणो एत्थ इत्थीओ ॥ ४८ ॥ दासेरएहिं सद्धि, फिरंति या दलइ अन्नमन्नं सा। जह मेच्छाण घरट्टी, तरुणतरट्टी तहा सावि ॥ ४९ ॥ धाडीगएहिं तेणेहिं, तेहिं अन्नावि आणिया कावि । एगागिणीए भज्जाए, तीए साहिज्जकज्जकए || १५० || विसहइ सवक्कि संपक्ककक्कसं तेसि सा न घरवासं । मग्गइ छलाई तीसे, मारी विव मारिउं महइ || ५१ ॥ धाडि गएसु सव्वैसु तेसु पाणियहारिया दोवि । ताओ गयाओ दूरे, तदभिमुहं भणियमेईए ||५२ || किं दीसइ कूवतले, हले! निरिक्खसु अग्गओ होउं । इय जोयंती पेहित्तु, पाडिया अंधकूवे सा ॥ ५३ ॥ पुच्छंति आगया ते, गया कहिं कहसु तुह लहू भइणी । भणइ सकोवा कामे, तत्तत्ती किं न जोएह ॥ ५४ ॥ आगारिंगियकुसलेहिं, तेहिं नायं इमाए निया सा । तो तेण चेडचोरेण, चिंतियं चित्तसुद्वेण ॥ ५५ ॥ किं मन्ने सा एसा, धूया विप्पस्स तस्स जाया वा । पज्जुनज्जरजज्जरकाया जा आसि बाला वि ॥ ५६ ॥ अहह हयासे ! हाहा, तुज्झ नवो कोवि वम्महुम्माहो । तित्ती एत्तियमेत्तेहिं, जं न जाया ह्यासावि (ए) ॥ ५७ ॥ अहवा एसा वेसा, अवरा किं नाम कावि पाविट्ठा | अलमलमिमीए पावाए सव्वहा किंतु गंतू ॥ ५८ ॥ कोसंबीए पुरीए, पयडसमत्थत्थवित्थरं वीरं । पुच्छित्तु समोसरणे, मुणेमि परमत्थमेत्थाहं ॥ ५९ ॥ इय चिंतिऊणमेत्थाऽऽगएण जमणेण पुच्छियं छन्नं । गोयम ! मए वि तुह चेव उत्तरं दिन्नमेयस्स ॥ १६० ॥ पामरं प्रति - सुंदर ! अ
जा सा सा
सेतिकथायां पंचशतचौराणां प्रत्रज्या ।
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