________________
जा सा सा सेतिकथायां चित्रकारवरलाभः।
सज्ज पजंतकारीणि ॥१०॥" कोसंबीओ कइयाइ, कोइ तत्थागओ निउणसिप्पो । चित्तगरदारओ दूरदेसदसणपिवासाए ॥११॥ उपदेशमाला
एगाए थेरीए, गेहंमी संवसेउमारद्धो । नियपुत्तनिव्विसेसेण, गउरवेणं नियइ सा तं ॥ १२ ॥ वरिसंमि तंपि तीए, थेरीए सुयस्स विशेषवृत्तिः वारओ जाओ। जत्ताए पत्ताए, चित्तणकजण जक्खस्स ॥ १३ ॥ करुणस्सरं रुयंती, थेरी आगंतुगेण तेणेसा । भणिया अम्मो!
किं नाम, कारणं कंदियव्वस्स ॥ १४ ।। अह वुत्तंतो वुत्तो, तीए तस्सेस पुच्छमाणस्स । भणियं तेणं माए ! मा कंदसु चित्तइस्स ॥ ११४॥
महं ॥ १५ ॥ बवइ इमा तो तं, मज्झ वच्छ ! वच्छाउ अहियगोरव्यो । तइ जीवंते जीवेइ, चेव न मओ मओवि सुओ 6 ॥ १६ ॥ पुण पुण पणमियपाए, एयं मन्नाविया इमा इमिणा । पहायाऽणुलित्तसुपवित्तमुत्तिधो(मो)यत्तियाजुत्तो ॥ १७ ।। होऊण |
वन्नएहि, परिवज्जियवजलेवलेसेहिं । कुंचियसरावनीराइएहिं नव्वेहि सव्वेहिं ॥ १८ ॥ कयमुहकोसो धोयत्तियाए सत्तट्ठ संगुणाए गुणी । कयउववासो पाए, पणमिय विनवइ अन्नुत्तिं ।। १९ ।।
“ मालिन्यं भुवनातिशायि विकटाटोपस्फुटः स्फुर्जथुः, प्रौढः प्रोषितभर्तृकाक्षरविधिर्नेत्रापमृत्युस्तडित् ।
एतद्वारिदवाह्यमेव भवतो मध्ये तु नैसर्गिकं, तत्तिष्ठत्यमृतं यदत्र जगतां जीवातवे जायते ॥२०॥" ततः-सुइचित्तो चित्तइ चत्तसव्ववावारवित्थरो अचिरा। खामेइ जक्खमक्खंडभत्तिजुत्तो स चित्तित्ता ॥२१॥ चित्तं चित्तं भत्तिं, जक्खो पिक्खित्तु भवियपञ्चक्खो । पभणेइ वरं वरसु ति, तुज्झ भत्तीए तुट्ठोऽहं ॥ २२ ॥ इमिणा वुत्तं चित्ते, स तुह पसाएण होउ एस वरो। चित्तयरो पउरो वा, न मारियव्वो तए कोवि ॥ २३ ॥ भणियमिमेणं सयमेव, सिद्धमेयं न संसओ कोइ । अहुणा बहुणा तोसेण, जेण मुक्कोऽसि जीवंतो ॥ २४ ।। वरमवरं पवरं ता, वरेसु अइतुच्छपुवपुन्नो सो। परिचलिरचारुचामरहरिकरिरजं न मम्गेइ ।। २५ ।। मणिकंचणकोडिं वा, किंतु कुबुद्धी वरेइ पेक्खेमि । जीवस्स अजीवस्स व, कस्सइ जइ अंसलेसंपि ॥ २६ ।। ता तारूवं रूवं तस्साऽहं सव्वहा लिहिज्जामि । एवमुवलद्धलद्धी, गिहं गओ पणमए थेरि ॥२७||
॥११४॥