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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
| जा सा सा सेतिकथायां मृगावतीकथा।
॥११५॥
| पयडियनियवुत्ततो, निवनायरलोयलद्धसम्माणो । कइवयदिणावसाणे, कोसंबिपुरीए संपत्तो ॥ २८ ॥ तत्थ य पत्थिवपवरो, चित्ता- | वइ निय सह सयाणीओ। भित्तिचित्तयराणं, चित्तेउं अप्पिया कमसो ॥ २९ ॥ अत्थाण रायवाडी, अंतेउरतुरयकुंभिकेलीसु । कस्सइ किंपि समप्पिअमसरिसचित्तं पवत्तेउं ॥ ३०॥ अंतेउरतरुणीकेलिकोउगं कप्पए पएसंमि । जंमि महीसो तं सो, चित्तयरो चित्तिउं लग्गो ॥ ३१ ॥ वरलद्धणं तेणं, ओलोयणजालए निविद्वाए । देवी मियावईए, दिवो अंगुटुओ आसि ॥ ३२ ॥ अइ सुसरिसं तओ तीए, चित्तियं रूवरेहअभिरामं । वसणाभरणविभूसियमुम्मीलइ लोयणे जाव ॥ ३३ ।। ता मसिबिंदू पडिओ उरुपएसंमि कुंचियग्गाओ। फुसिए पुणो वि पडिओ, पुण फुसिए तंमि पुण पडिओ ॥ ३४ ॥मुणियमिमेण एस णं, होयव्वमवस्समेत्थमेईसे । अच्छउ ता न फुसिस्सं, चित्तसहा चित्तिया सव्वा ॥ ३५ ॥ तं नरवई नियंतो, देवीरूवं निरुवए जाव । निद्धे विद्धे चितमि, चित्तेण ता रहिओ ॥ ३६॥ मसमिक्खिउण चिंतइ, पच्छन्ने लंछणं कहिमिमेणं । नायं होही किं नाम, धरिसिया मह पियाडणेण ॥ ३७ ।। तो अरुणलोयणेणं, स राइणा मारणाय आणत्तो । अविमरिसियकारित्तं, मत्ताण व होइ कुवियाणं ॥३८॥ अविमरिसिय कारित्तं, राईण धणी(णा)ण निठुरकरतं । गुणिमच्छरो गुणीणं, खलविहिणो खलियतिगमेयं ॥३९॥ सीलमहासइ सासइ भासई देवि किंच, नियमज्जाय अभु(चु)किय जलनिहि वेल जिव । जाणइ जइवि सयाणिउ सव्वई एउ मणि, मोहपिसायपरावसु जायउ तहवि खणि ॥ ४०॥ तासु मियावइ देविहि सुद्धहिं गंग जिव, इय कलंकु अकलंकहि आसंकियई किव । एत्थु वत्थु परमत्थिउण नत्थि तं किंपि भुवि, अइ सुद्धवि न जामु आलु आलवइ कुवि ।। ४१ ॥ परमपसायमवस्सं, पाविस्सं पत्थिवाउ दाणिति । चित्तयरो चिंतंतो, पत्तो मरणं व विहिवसउ ॥ ४२ ॥ हरिणाण हरिणनाहि व्व, गंधसाराण सारगंधो व्व । अहहस्स मूल(मा)नासाय, सोयमिद्धो गुणो सिद्धो ॥ ४३ ॥ चित्तयराणं सेणी, उवटिया विन्नवेइ नरनाहं । देव ! किमेवमयंडे, मारिजइ एस चित्तयरो ॥ ४४ ॥ दंसह दोसलेसं, अवगयतत्तेहिं तेहिं तो भणियं । चित्तयरभालतिलओ, वरलद्धो एस किं बद्धो | ॥ ४५ ॥ सुरखुत्तंते वुत्ते, मुहमित्तं खुज्जियाए दंसित्ता । निभिच्चपञ्चयत्थं, लिहावियं तारिसं रूवं ॥४६॥ तहवि अवंझो कोवो,
स्यामा
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