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भवियव्वयानियोगा उवओगाऽभावओ बहुदिणेहिं । दिना दिक्खा सूरीहिं छउमधम्मत्थिणो तस्स ॥ १३ ॥ यत.-" नहि नामऽना- IN उपदेशमाला
विनयरत्नभोगश्छद्मस्थस्येह कस्यचिन्नास्ति । कर्म ज्ञानावरणं ज्ञानावरणस्वभावं हि ॥१४॥” “ वाहेहिं वेसाहिं, धम्मच्छलवच्छलेहिं को नाम ।।
सन्धिः विशेषवृत्तिःIN बहुकूडकवडनाडयपडूहिं, वंचिजए न जए ॥ १५॥” गणिगणसेहतवस्सी कुलवेयावच्चकिच्चनिचरओ। 'विणयरउ 'त्ति संनामं
पावइ परिवारलोयाहि ॥ १६॥ " इहलोइयंभि कजे, सव्वारंभेण जह जणो तणइ । तह जइ लक्खंसेण वि परलोए ता सुही | ॥११०॥
होइ ॥ १७ ॥ जंतेसु गुरुसु निवमंदिरंमि घेत्तुं स एइ नीसेज । निति न ते तं पुण, जं न जोग्गया जाओ जायत्ति ॥१८॥ नियरयहरणस्संतो स कत्तियं वहइ कंकलोहस्स । नियभारेणं जा जाइ, रुहिरमिलिया महीए तले ॥ १९ ॥ जियरक्खाविक्खाय, रयहरणं कत्तिया निवखयाय । धरइ दुगंपि कुसीसो, जहा अमयं च गरलं च ॥ २०॥ बारसवासाणि अइच्छियाणि छलमिच्छुणो यजइस्स । धुवमवसरो न जाओ नरवइपुन्नप्पभावाओ ॥ २१॥ अइवाउलंमि जाए जइपरिवारे कयाइ सव्वंमि । तेणेव समं सूरी संपत्ता रायभवणंमि ।। २२ ।। " खलचोरपारदारियमज्जाराईजिया महाकूरा। चिररक्खियावि पावा तदेगचित्ता लहति छलं ।। २३ ।। सूरिहिं मुणियमेसो, बारसवरिसोवएससहसेहिं । होही गीओव्व उवाहिवन्नमज्जेइ वजंपि ॥ २४ ॥ पइरिकंमि पएसे, वसहीए गुणगुरुठिया सुगुरू । समयंमि समागच्छइ, निवई सुविसुद्धसद्धाए ॥ २५ ॥ परमगुरुपायपंकयपणामपुव्वं पोसहं लेइ । पडिकमिऊणं पुच्छइ, पसिणे निसुणेइ वागरणे ॥२६।। भालयलारोवियपाणिसंपुडो देसणं खणं सुणइ । कयमुहकोसो विस्सामणं च सत्तीए पवत्तेइ ॥ २७ ॥ तस्स वि काउं कुमुणिस्स, कायविस्सामणं मणविसुद्धो। मुहपोत्ति पडिलेहण-| पुवं संथरियसंथारं ॥ २८ ॥ आपरिय उवज्झाए जे मे जाणंति एवमाईणि । सरिऊण चउस्सरणं, अणिच्चयाईणि भावेण ॥२९॥ अणुजाणह संथारं बाहुवहाणेण वामपासेणं । कुक्कुडिपायपसारण अतरंत पमजए भूमि ॥ ३० ।। उच्चरिऊणं इच्चाइ जायनिहेसु |
॥११०॥ गुरुसु सुत्तो:सो। कुमुणी जग्गइ एगो दवेणं न उण भावेण ॥ ३१ ॥ सणियं सणियं उदइ निवडइ पुण निरयअंधकूवंमि । पउणीकरेइ सह कंककत्तियं दुक्खखाणीए ।। ३२ ।। निवकंठे तं ठवेइ कट्टइ नणु अप्पणो पुणो कंठं। निवई वि मुणियतत्तो
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