________________
उपदेशमाला
विशेषवृत्तिः
सन्धिः
॥ १०९॥
Deeperezoedeocom
लथालमप्पेह । दियलोयणाणि पाणीहि जेण मद्देमि होमि सुही ॥ ५१ ॥ अइरुद्दज्झवसायं सविसाया जाणिऊण तममच्चा । गुंदय- 10
विनयरत्नफलाण थालं भरिऊणऽप्पिति पाणिमि ॥५२॥ मुहु मुहु परामुसंतो संतो संतोसमुव्वहइ अहियं । नयणदुगग्गाहीणं तक्कोडीहि विन तूसेइ ॥ ५३॥ न हु पुप्फवइफासेवि तारिसी तस्स आसि चित्तरई । थालफलाणं फासेण जारिसी पावभावस्स ॥५४॥ तं तस्स पुरो थालं अवियमाभासए नरेसस्स । सत्तमपुढवीपत्थाण, मंगले अक्खवत्तं व ॥ ५५ ॥ इय रुद्दज्झाणझाइस्स, वासाई | सोलसगयाइं । तदहियसत्तसयाऊ, स धरित्तिं सत्तमि पत्तो ॥ ५५६ ॥ सिरिबंभदत्तचक्कीकहा सम्मत्ता ।।
उदायिनृपमारकोदाहरणमभुनोच्यते-सुमणोहराहिं कलहंसयालिसदालपयपहाणाहिं । सहइ सरसीहिं जं नाम बाहिमंतो य तरुणीहि ॥ १॥ कयअमरपुरिचमक्केसु तियचउक्के अदिद्रुपरचक्के । पाडलिपुत्ते तत्थासि पत्थिविंदो उदाइ त्ति ॥२॥ सुविसुद्धधम्मधारणधुरीणधिज्जो वि सज्जियगुणो वि । जो अप्पियलक्खो विहु, परम्मुहे मग्गणे खिवइ ।। ३ ।। अरिरमणीसु अरन्ने गुंजाहलहारहारिहिययासु । पल्लविओ जस्स पयावपायवो दीसइ सयावि ॥ ४ ॥ कम्मि वि महावराहे महावराहेण तेण महिधरणे । धरणीसो कोइ कयाइ आसि संहरियरज्जसिरी ॥५॥ देसंतरंमि पत्तस्स तस्स पुत्तो तओ अवंतीए । तीए य पहुं लमगो ओलग्गेउं अणुव्विग्गो ॥६॥ परि वसइ सो उदाई, भणइ य पीई पिवेज को तस्स । जो हारिऊणमेत्थंतरंमि विन्नत्तमेएण ॥ ७ ॥ जइ वहह महोदंतं, ता तुम्ह मणोरहे पसाहेमि । इय रन्नाऽणुन्नाओ, सो पत्तो पाडलिपुत्ते ॥ ८॥ हच्छं पिच्छेइ छलाई, छन्नं उच्छिदिउँ निवइ जीयं । किंतु न पावो पावइ, पच्छावं कत्थइ विहत्थो ॥ ९॥ अट्टमीचउहसीसुं पोसहकज्जेण राइणो पासे । तेणायरिया नाया जंता तत्थेव य वसंता ॥ १०॥ वपुरे एस उवाओ निववेरिविणाससाहणसमत्थो। इय चिंतिऊण सूरी, ते निच्चं पज्जुवासेइ ॥ ११ ॥ निसुणइ सम्मं धम्मं तवइ तवं तिव्वमायरइ विणयं । अइउज्जमेण पव्वजमजिउ दसए सद्धं ॥१२॥
0000e0aeebeoen
१ या C. DI २ सवइ ODI ३ बी
।
।