________________
ब्रह्मदत्तचक्रिसन्धिः
उपदेशमाला-0
॥५३०॥ कइया वि दिओ एगो मग्गेइ पसायचित्तओ निवई । निययस्स महाऽऽहारस्स देहि मे देव ! लेसंपि ॥३१॥ पभणइ
इमो मदन्नं अइदुज्जरमइचिरेण जीरंतं । कुणइ नराणं पसरंततिव्ववम्महमहुम्मायं ॥ ३२ ॥ भणियं दिएण अणलंकम्मीणो भोय- 18 विशेषवृत्तिः णप्पयाणे वि । तं कह पहु पणयाणं माहप्पमणप्पमप्पेसि ॥ ३३ ॥ सामरिसेण तमन्नं निवेण भोयाविओ गओ सगिहं । रय
णीए जीरमाणेण तेण जाओ महुम्माओ ॥ ३४ ॥ अगणियजणणीजाया-जामेई जामि-सासुयासु रए । उम्मत्तरासहो विव बलि॥१०८॥
मड्डाए पयट्टो सो ॥ ३५ ॥ तदणुपभाए जाए, जिन्ने कह कहवि चक्किआहारे। निसिचरियं चिंतंतो लज्जाजरजजरो जाओ ॥ ३६॥ कुचरियकलंकपंकेण लित्तमाणणमयं नियं तेसिं । दंसेउमपारितो गओ गिहाओ न पविसेइ ॥ ३७ ॥ अइटिव्वकोक्जालाकरालिओ अप्पघायगो नूणं । चिंतइ उवायजाय कह चक्की मारियव्वो त्ति ॥ ३८॥ एस अणिमित्तसत्तू मज्झ सुसामिच्छलेण विक्खाखो। दाऊण जेण भोयणमकज्जवजाहओ विहिओ ॥ ३९॥ " पयपाणं कारिजउ, लालिजउ अंकधारणाईहिं । न हु होइ अप्पणिज्जो, जह किर सप्पो तहा विप्पो ॥ ५४० ॥" सुचिरसिणेहसहायं पुण पुण पत्थियसमत्थियाऽऽहारं । वग्यो व्व बिहियनयणुग्घाडं निवमीहइ स तुं ॥४१॥ वडहिटे उवविट्ठो दिवो तेणेगया य अयबालो। पत्ते भत्तीए लिंडियाहिं दूराओ विंधतो | ॥ ४२ ॥ चिंतइ एस भविस्सइ निउणो महवेरसोहणो वाउ । उवयरिओ दाणाओ तह जह जाओ कहियकारी ॥४३॥ कइया | य रायवाडीए चक्कवट्टी पयट्टओ दिवो । अयबालेण देउलकोणे कत्थइ निलुक्केण ॥ ४४ ॥ संधाणेणं एगेण चेव खिविऊण गोलियाण दुगं । नयणाई निवस्स निवाडियाई पंपोट्टयाइं व ॥ ४५ ॥ अह सव्वओ विजोयंतएहि कुविएहिं अंगरक्खेहिं । दिवो स घायगो हम्म-माणओ विप्पमप्पेइ ॥ ४६॥ नाऊण महाराओ, एयं चिंतेइ धि दुजाईओ। जेमंति जत्थ तत्थेव भायणं नूणं भंजंति ॥४७॥ "जो दिन्नेवि कदन्ने, मन्नइ सामि च सो वरं साणो। अमयाहारेणं भोइओ वि मारेइ पुण विप्पो ॥४८॥" इय सकुडुबो डुबो व्व दुन्नि माराविओ दिओ स तओ। सिरिवंभदत्तराएण मसयमुद्वि व्व निविओ ॥४९॥ अवरे वि पुरोहियभट्टचट्टपमुहा हणाविया सव्वे । दुजाईजायनिरायरोसअंधेण मुद्धेण ।। ५५० ।। सचिवा आणत्ता जह मह भरियविसा
DECORRECORDCRedeveeraceaeere
॥१०८॥