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उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
॥१११॥
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तत्तो पंचत्तमणुपत्तो ॥ ३३ ॥ भयकंपमाणपाणी, मोजूर्ण कत्तियं तहिं चेव । स गओ जइ त्ति जामिल्ल-अंगरक्खेहिं वि न रुद्धो ॥ ३४ ॥ उवचियनरनाहसरीर-सेलसिहराउ रुहिरनिज्झरणं । पवहंतं संपत्तं गुरुसंथारप्पएसंमि ॥ ३५ ॥ रुहिरस्स फासगंधेण
| विनयरत्नजागरेऊण जाव जोयंति । पिच्छंति ताव सूरी नरवइणो मुंडरुंडाई ॥३६ ॥ हा हा अकजमेयं, कई कयं कूरकम्मुणा केण ।
सन्धिः तिगुणंगरक्खपरिवेढवेढिओऽयं ति चिंतंति ॥३७॥ न नियंति जा कुजायं कुजई संथारयमि तं गुरुणो। तो चिंतंति जहेयं वियंभियं तस्स पावस्स ॥ ३८ ॥ अहह अधन्नोहं जस्स, एरिसो आगओ गुरुकलंको । जिणपवयणआरामे मए दवम्गि इमो दिनो ॥३९॥ मुणिवेसेणं विस्सासिऊणमेसो नरेसरं हणिउं । इह कोइ घायगो आगओ त्ति भमिही अजसपडहो ॥४०॥ छोल्लियछणमयलंछणछाए जिणसासमि मालिन्नं । मा होउ मए विहियंति पत्तकालो महऽपवहो ॥ ४१ ॥ इय निच्छिऊण पेच्छइ जा हच्छं कंठच्छेयणे सत्थं । सो चेव ताव निवकंठीविया कत्तिया दिवा ॥ ४२ ॥ सोहियसमम्गसल्ला सिद्धाण पुरो महव्वए पंच | IN उच्चारिय खामिय संघसूरिपामुक्खपाणिगणा ॥ ४३ ।। कयभवचरिमसुनिश्चलचउविहाहारपञ्चखाणा य । कंठे ठवंति 'परमेट्ठिपंचगं कंककत्तिं च ॥४४॥ मरिऊण तिव्वसंवेगसंगया दोवि देवलोगंमि । जाया पभायसमये निएइ जा सेज्जवाली तं ॥४५॥ ता पोकारइ महया सद्देणं हा हयंमि ही मुट्ठा । मिलिओ लोओ हाहारवेहिं बहिरियनहं रुयइ ॥ ४६ ।। जाओ एस पवाओ कोइ16 कुसीसो निवं च सगुरुं च । सह इह परलोएहिं, हंतूणं कत्थइ पलाणो ॥ ४७ ॥ तस्स अपुत्तस्स मयस्स, पंचदिव्वेहि मिलिय सव्वेहिं । पउरपमुहेहिं पट्टे पइडिओ पढमनंदो त्ति ।। ४८ ॥ तुरियं स नासिऊणं, पावो पत्तो अवंतिनिवपासे । जोहारिय संभारइ पुव्वं सव्वं सवुत्ततं ॥ ४९ ॥ तं स महीसो सोउं चमक्किओ चिंतवेइ दुचरियं । हा हा अहो दुरप्पा रयणमिणं निहणमुवणीयं ॥ ५० ॥ कंपि अकजं एयस्स, नत्थि कुविओ कयाइ मारिजा। वरिससयाओ वि ममंति झत्ति निव्वासिओ देसा ॥५१॥ उवएससहस्सेहि वि, न चित्तसाहुस्स बंभदत्तो सो। जह पडिबुद्धो बारस-वरिसेहिं एवमेसो वि ॥५२॥ इति विनयरत्न(ति)कथा समाप्ता । कुतः पुनर्ब्रह्मदत्तो राज्यलक्ष्मीमपरित्यजन् सप्तमपृथ्वी प्राप्त इत्याह