________________
उपदेशमालाविशेषवृत्तिः
ब्रह्मदत्तचक्रि| पूर्वभवाः
Nbe
॥८३॥
aepdea
ओ जुत्तो। भिगुपडासी सो। अहह अजुत्तमजुत्त' भणियं भो के तुभे, कमअवगयतावा जाया
दुज्जाइसिएणं ता इमिणा जम्मुणा वि पज्जतं । इय चिंतिय ते चलिया उड्ढमुहा कहिं वि मरणाय ।। ४९ ॥ हच्छं गच्छतेहिं सिहरी निरिक्खओ कोवि । पडणाय चडतेहिं च तत्थ एगो महासाहू ॥ ५० ॥ वाघारिय पाणिजुगो सुहमाण पाणुतणुपरिहा फंदो। नासानिविद्वदिट्ठी सियझाणं झायमाणो य ॥५१शा तममयनिम्मियझरहर-झरंतनिझरणमिव निरिक्खता । अवगयतावा जाया
आया अभिवंदिउं पुरओ ॥५२॥ पणमिय महीनिविद्वा, मुणिणा उस्सारिऊणमुस्सगं । भणियं भो के तुब्भे, किमत्थमेत्थागयाओ दुमो ॥५३॥ ता वुत्तो वुत्ततो निओ तओ जंपए तवस्सी सो। अहह अजुत्तमजुत्तं जमप्पणो घायगा होह ॥ ५४॥ जाइ कलंको दुक्कम्म-निम्मिओ तक्खओ तओ जुत्तो। भिगुपडणे पिंडोच्चिय पडेइ न झडेइ दुक्कामं ॥ ५५ ॥ नियदुक्यक्खयहा ता पव्वज्ज पव्वजिउं सजो। अहिगयसुयत्थपरमत्थवित्थरा तवह तिव्वतवं ॥५६॥ एमाइ देसणा वासणाए अंगीकुणंति ते दिक्खं । देइ स तेसिपि महामुणीण मग्गो नवो कोइ ।।५७|| लहु अहिगयसुत्तत्था गीयत्था ते खविंति अप्पाणं । छटुमदसमदुवालसाइ तवकम्मुणा कर्म ॥५८।। पुरनगराइविहारकमेण हथिणउरंमि संपत्ता । संभूयमुणी मासस्स पारणाए पुरस्संतो ।।५९॥ गोयरचरियाए उच्च-नीयगेहंगणेसु हिंडतो । धवलहरगवक्खगएणं नमुइमंतिणा तेण दिवो य ॥६०॥ पञ्चभिजाणेऊणं, नियनिंदियकम्मकहणसंकाए । स नयरनिस्सारणकारणेण ताडावए तमलं ॥६१।। "उवचिणिय चित्तसंका वंका दुक्कम्मकारिणो निच्च । कयसुकया सव्वत्थवि नीसंका चेव वियरंति ॥६२॥" अह अविहियावराहस्स तस्स पहयस्स लेठ्ठजट्ठीहिं । उल्लसइ तेउलेसा, धूमेणंधारियं गयणं ॥६३॥ अइसुरहिसीयलाओ सुनिम्मलाओ वि चंदणाहिं लहुं । उच्छलइ किं न जलणो सुघणं घंसिज्जमाणाओ ॥ ६४ ॥ नवजलएहिं व छन्नं उद्धरउयधूमपडलेहिं । नहमंडलमालोइय आया भीया पुरपहाणा ।। ६५ ॥ चक्की वि समागंतूण झत्ति पणओ परसु बिन्नवइ । जइ महा-1 रिसी वि कुप्पंति ता जलं किं न पज्जलइ? ॥६६॥ " हियए मुणीण कोवो, न होइ अह होइ चिट्ठए न चिरं । जइ कहवि चिरं चिट्ठिज्जइ, तहवि निव्वडइ न फलेहिं ॥ ६७ ॥” इय चक्किवि चित्तुच्चारणाउ अगणतयंमि तया । अणुवसमंते पत्तो, चित्तो वुत्तंततत्तविऊ ।। ६८ ॥ पभणइ मा कुरु कोवं, दहिस्सए एस पट्टणं पच्छा । पढमं तु तिव्वतवकम्मनिम्मियं सुकयरासि ते
Dececancernormone)
Doorpor
॥८३॥