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ब्रह्मदत्तचक्रिपूर्वभवाः
लोके शोकमु(जु)षि क्षणे गतगुणे श्रेयःपथे सद्व्यथे, क्रान्ते ब्रह्मणि मर्मणि स्थितमतौ संक्रन्दने क्रन्दने । उपदेशमाला
तूष्णीं पुष्णाति पूष्णिपक्ष्मलदृशं चेद्रावणो नो हरेत् , तत्किं तत्पृथुकण्ठपीठलुठनाद्विश्वोत्सवः स्यादयम् ॥१५॥ विशेषवृत्तिः
भणिओ तेणाऽमच्चो मच्चुमुहाओ तुमं विमोएमि। जइ मह पुत्ते पाढेसि बाढमिह गूढगेहगओ ॥ १६ ॥ ॥८१॥
| पडिवन्नं विप्पेणेवि तेणेयं हरिसनिब्भरेणंगेण । किमकजंपि न कज्जइ पाणपिवासाए पाणीहिं ॥ १७ ॥ अविकलकलाकलावं सिक्खवयंतो वियक्खणे तणए । पाणम्स तस्स पाणप्पियाए चोरियरए रमइ ॥ १८ ॥ अन्नु पाणुपाणहघरि किज्जइ, तसु जि भज पच्छन्न रमिजइ । चरिउ एउ सोत्तियह विसिट्ठह, नहु अकज्जु गुणवंतह भगृह ॥ १९॥ इय अवगयवुत्तंतो पंचत्तं पावित्रं
तमीहइ सो। इह सहइ पारदारियपराहवं को सदारेसु ॥ २० ।। तत्तो अवगयतत्तेहिं तेहिं पुत्तेहिं चंपिओ पाओ । निस्सारिऊण | मुक्को नमुई हथिणपुरं पत्तो ॥ २१ ॥ उवयारस्सुवयारो जो सो वाणिजमिह न कोइ गुणो। तं जीरवंति जे उण, ताण महN गीण किं भणिमो ॥ २२ ॥ सचिवो कओ कयाई, सणंकुमारेण चक्किणा तत्थ । मणिहाणे ठाविज्जइ, काओ वि अणायतत्तेहिं | ॥ २३ ॥ अह विसमबाणभूवालविजयजत्ताए सारयं समयं । अइतारं तारुन्नं ते पत्ता चित्तसंभूया ॥ २४ ॥ सिंगारदिक्खदक्खे देवे दड्डंमि तंमि गिरिसेण । सामरिसेणं विहिणा व वम्महा निम्मिया दोवि ॥ २५ ॥ किन्नरकंठा कुंठा नारयवीणा वि होइ अपवीणा । ससुहेण तेसु गायतएसु कन्नाण पारणयं ॥२६ ।। सोऊण ताण सरताणमुच्छणाछायसंगयं गेयं । मन्ने 'दिनासि तया कलकंठीणं मुहे मुद्दा ॥ २७ ।। अह विलसेइ वसंतो, पउत्थवइयाण सोसियवसंतो। अविउत्ताण वसंतो, जायं जणहिययमवसंतो ॥ २८ ॥ ससहरसियायवत्तो, मलयानिलचारुचामरम्गाहो। कुसुमसरसेन्ननाहो, वसंतराओ जए जयइ ॥ २९ ॥ नहवाडीए तारय-कुसुमाए काममालिएणेसो। संसालिज्जइ सिंगारसारकंदो अहो चंदो ॥३०॥ महुसमयंमि पवासं, माणं वा मा
विनासि तया कलकंठीहि । २ संभालिज्जइ BI
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