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बाहुबलि
उपदेशमाला विशेषवृत्तिः
केवलज्ञानम् ।
॥६८॥
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वपुरि पुरिसहं हियइ उच्छाहु जं जित्तउ चक्कवइ एव अवरु अच्छरिउ संचिउ, इह (हि) केवलु आउ तुहं जेण पाउ उक्खणलं निच्छिउ । जो दीसइ पच्चक्खु तिणि सहुँ किज्जउ संरंभु, जो हदु केवलनाणि सहुँ सो अउव्वु आरंभु ॥ १०१ ॥
पडइ दुस्सहु सीउहेमंति हिमि डझहिं कमलवण दंतवीणवायति दुग्गय, निसि दीहर तसु मुणिहिं पुलयपडल सव्वंगु उगग्य ।। पासि फिरंतह फेरुयह फुड फेक्कारु सुणंतु, सो अहियासइ हिमसमउ सुक्कझाणु झायंतु ॥ १०२ ॥ ___तरु निसुंभइ गिंभआरंभु मायन्हिय उन्हपह तरणि तिव्वतावेण तावइ, उन्हालइ ल्यझल अडविजीव अइतिस सहावइ । तहवि तवस्सी न सो चलइ थिरकयकाउस्सग्गु, एगदिदि निठुरहियउ जोयइ केवलमग्गु ॥ १०३ ।। ___ पडहिं पाउस नीरनीरंध नवविज्जुलझलहलहिं मेह धीरुगंभीरु गजहि, तणवेल्लि-तरुपल्लविहिं ठइअ मुणिहि नहु अंग नजहिं । अहि गोहाहिंव वालियउ बहुकयकुंतलनीडु, झाणु झाइ मणि बाहुबलि अचलु अभीडु अपीडु ॥ १०४॥ .
रिसहु जाणिवि जुत्तु पत्याउ पट्टावइ किंपि कहि निययधूयवर बंभसुंदरि, संपत्ती ताउ ताहिं अडवि ‘मज्झि वणसंडसुंदरि । ताहिं गवेसंतीहिं चिरु तहिं वणि गुणिहिं गरिछु, तणलयछाइउ बाहुबलि कहवि कट्ठि सो दिछ । १०५ ॥ ____ कह(वि)हि वंदिवि सामिसंदिछ जेटुन्ज ! ताइण भणिउ होइ नाणु नहु हत्थि चडियह, सो चिंतइ हत्थि कहिं नाहु आह
अन्नह किं कइयह । हुं हुं जाणिउ एव मई नियदुम्मइ सच्छंदि, वरिसु तविउ अइतिव्वु तवु चडियई माणगइंदि ॥ १०६ ।। ___अहह कूडउ किउ अहंकारु मह भाइय जइ वि लहु तहवि तिजि गुरुगुणिहिं जेद्वा, चिरदिक्खिय खंतिखमसयलकलिय| केवलविसिट्ठा । सुठ्ठ सामि सिक्खविउ हां वंदिसु ते गुणखाणि, इय उक्खणियइ पाइ खणि जाउ सुकेवलनाणि ॥ १०७ ॥
मिलिय तक्खणि तियसगयणगि ताडिति दुंदुहि महुरसुरहिकुसुमजलवुट्टि मेलहिं, नवकेवलि तेण सह गरुयहरिसभरभरियचल्लहिं । सो मुणि पत्तु समोसरणि एकपयाहिण देइ, केवलि परिसह जाइ करि आसणबंधु करेइ ॥ १०८ ॥
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