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सुपदेशमालाविशेषवृत्तिः
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॥६२॥
दिया एहि । मह ससुयस्स रिद्धीणमंतरं अंब ! पिक्खेहि ॥ १९॥ काऊण कणेरूकंधराए मायं विणिग्गओ भरहो । केवलिमहिमं ।
मरुदेवीकाउं, जिणस्स नियरिद्धिविद्धीए ॥ २०॥ वणपिउवणपव्वय-कंदरासु अइसीयताववाएहिं । भमडइ पीडिजंतो, पुत्तो मह नग्गउ
केवलज्ञानम् । व्विग्गो ॥ २१ ॥ तं पुण पुत्तयअञ्चंगचंगसव्वंगभोगसामग्गी। इय अविरयरोयंती देवी अंधव्व जायाऽसि ॥ २२ ।। भरहो भणेइ अम्मो! सुयरिद्धि पेक्ख पेक्ख अक्खूणं । मणिपायाराईयं भुवणे अन्नस्स कस्सेवं? ॥ २३ ॥ सोऊण सामिवाणिं, अमरतरंगिणि तरंगणसमाणिं । आणंदवाहधाराहिं, सह गया नयणनीली से ॥२४॥ तो मणिविमाणमालाहिं मालियं नहयलं निरिक्खेइ । रणझणिरकणय किकिणि केउकलावं चुउसरणं ॥२५।। हरिसुल्लसंतसब्भूयभावणाभासरासिकयकम्मा । उग्घडियकेवलालोयलोयणा सिवपयं पत्ता ॥२६।। इय अच्छरियं अच्चंतथावरा जं इमाऽऽसि जिणमाया । एत्तियमेत्तेण वि पढममेव सिद्धा, भरहवासे ।। २७ । तियसेहिं कया महिमा मरुदेवी इह हि पढमसिद्धो त्ति । भरहो वि भयवं तं वंदिऊण पत्तो अउज्झाए ॥ २८ ॥ पूयानट्टपबंधेण, कुणइ अट्ठाहियाउ चक्कस्स । गंतुं तत्तो जं नियमहीए सयमेव तं ठाइ ॥२९।। तत्तो जणाण जो य ववहारो तत्तिएण संजाओ। चउरंगिणीए सेणाए, संगओ भरहचक्कीवि ॥३०॥ तं गच्छिरमणुगच्छइ अच्छइ अच्छिन्नपेच्छणुच्छाहो। पुव्वाइकमेण मागहाइ तियसे पसाहेइ ॥३१॥ अत्थाणे आगयमिक्खिऊण सरमासु चक्किनामकं । जाणंति ओहिणा ते उप्पन्नो पढमचक्कि त्ति ॥ ३२ ॥ मणिरयणकणयकुंडलकिरीडकेऊरहारदोराई। असिअसिघेणुकिवाणाइ ढोयणीयं गहेऊण ॥ ३३ ।। उवचिटुंते चकिं आणानिद्देसकारिणो हो। अट्टाहियाइ पूर्य, पडिच्छियं जंति सटाणे ॥ ३४ ॥ सयमोयवेइ सिंधुं सुसेणसेणाहिवं तु पेसेइ । सिंधुनईनिक्खुडमेत्थ साहणत्थं अइमहत्थं ॥ ३५ ॥ वेयड्ढगिरिकुमारं अमरं साहेइ लेइ ढोयणियं । तिमिसगुहाए कयमालनामगं देवमोयवइ ।। ३६ ॥ उग्घाडइ तिमिसगुहं सुसेणसेणाहिवो तओ गंतुं । गयखंधगओ पविसइ विलिहंतो उभयभित्तिसु ॥ ३७॥ कागिणीरयणग्गेणं एगुणवन्नासमंडलालीओ।
16॥६२॥ तो भरहचक्कीवट्टी पत्तो परभारहलुमि ॥ ३८॥ जिणिऊण चिलाए सह सुरेहिं मणिकंचणाइ घेत्तूण । चुल्लहिमवंतपव्वयकुमारमोय| वइ तो तियसं ॥३९॥ साहइ सुसेणसेणाहिवो वि अह सिंधुनिम्खुडं गंतुं । नियनाममुसभकूडे लिहइ सयं संघियसरेण ॥४०॥
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