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________________ उपोद् घात. ने अने बेवटे श्रीमलवादीजी, श्रीसिघसेन दिवाकरजी तथा श्रीजिनजागणिक्षमाश्रमणजीना केवलज्ञान दर्शन अने तेना उपयोग संबंधी मतो जणावी संमति तर्कनी ते विषयनी गाथाउनुं सारी रीते विवेचन करी ते तमाम मतोनुं नय अपेदाए एकीकरण कयु बे. श्रा प्रमाणेना रहस्योवाला दश ग्रंथोथी या ग्रंथमाला पूर्ण करवामां श्रावी . | जोके था दश ग्रंथोनो उपोद्घात संदेपथी जणाव्यो ने तो पण सामान्य रीते जेम बीजा सामान्य ग्रंथोना उपोदूघातथी समग्र ग्रंथनु हार्द आपी शकाय ने तेम अहीं बनी शके तेवू नथी, तेनुं कारण आ ग्रंथोर्नु अतिशय गहनपणुंज जे. उतां तद्दन सामान्य बुधिना जीवोने कंश्क उद्देश मात्र मालूम पके माटे आ उपोद्घात लखवामां आव्यो बाकी तो श्रीमन्न्यायाचार्य महाराजनां अत्यंत गहन वाक्योनो टुंकाणथी बोध करवानो उद्यम हास्यने पात्र बनावे तेवु ने. तो पण शक्ति प्रमाणे जे मनुष्य जेम बोध पामे तेम प्रयत्न करवानी जरूर जाणी आ उद्यम कर्यो बे. . केटलाक जव्यो तरफथी जापान्तर साथे आ ग्रंथो बहार पावा सूचना थती हती पण वर्तमान समयमां न्यायविषयना ग्रंथोनो बोध भाषांतरो उपरथी असंजवित नहि तो अशक्य तो जरुर ने एम जाणवाथी ते तरफ उद्यम करवानो विचार कर्यो नथी, उतां मूल पुस्तको सारी रीते बहार आव्या पली बीजी संस्था तेनां नाषान्तरो करी बहार पामशे ए पण संजवित जे एम धारी मूल ग्रंथनोज उधार करवानी अपेक्षा राखी आ ग्रंथोनुं मूलमात्र बहार |पामवामां आव्यु बे. ॥१८॥
SR No.023511
Book TitleNyayacharya Yashovijayji Krut Granthmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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