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मतिज्ञाननुं लक्षण, तेनुं श्रुतज्ञानथी जुदापणुं, श्रुतनिश्रित अश्रुतनिश्रित जेदो, पदार्थ, वाक्यार्थ, महावाक्यार्थ अने ऐदंपर्यार्थ रूपी बोधनुं श्रुतपणुं, ते चारे प्रकारना बोधनी घटना ने चौदपूवींना पद्स्थानपतित बोधनं श्रुतपणुं जणाव्यं बै. अगल अवग्रहादिकना अनुक्रमनी जरुर, अवग्रहना जेदो, तेनुं स्वरूप, तेना प्रामाण्य अप्रामाण्यपणाना स्वतस्त्व परतस्त्वनो निर्णय, सम्यक्त्वने अंगे ज्ञाननी प्रामाण्यता, स्याद्वादने अंगे एक पदार्थना ज्ञानथी सर्व पदार्थनुं ज्ञान अने अवग्रहादिक भेदोमां ज्ञान दर्शननी व्यवस्था जणावी मतिज्ञाननुं स्वरूप अत्यंत गहन रीते सूक्ष्म बोध थाय तेम जणान्युं बे. श्रुतज्ञाना विवेचनमां तेनुं स्वरूप, मतिश्रुतनो तफावत अने महावादीना मते ते बन्नेनुं ऐक्य समजाववामां श्राव्यं बे. त्रीजा अवधिज्ञानना विषयमां तेनुं लक्षण ने परमावधिनो विषय सारी रीते समर्थन करी मनः पर्यायश्री तेनी जि न्नता साबीत करी बे. चोथा मनःपर्याय ज्ञानना स्वरूपमां तेनुं लक्षण जणावी चिंतित जाणवानी रीति तेमज मनःपर्याय मां दर्शननो अंगीकार ने अनंगीकार, तेमज मनःपर्यायथी जाणवा लायक मननुं स्वरूप समजाव्यं बे. पांचमा केवलज्ञानना विषयमां तेनुं लक्षण, सर्वज्ञतानी सिद्धि, तेनुं प्रमाणिकपणुं, केवलज्ञानावरणना नाशनी आवश्यकता, कर्मनुं श्रावारकपणुं, खोजादिकनी कफादिश्री तेमज शुक्रादिश्री उत्पत्ति माननाराउंना मतनु खंकन, नैरात्म्यनाव माननार बौधना मतमां सर्वज्ञतानुं अव्यवस्थितपणुं, एकरस ब्रह्मज्ञानने केवलज्ञान तरीके माननारनुं निराकरण, परमार्था - दिक ऋण शक्तिनुं खंमन, दृष्टि सृष्टिवादनुं खंमन, ब्रह्मविषय ने ब्रह्माकार वृत्तिनुं खंडन, अध्यासनुं निराकरण, व्यार्थिक पर्यायार्थिक नयनी अपेक्षाए सूक्ष्म विचार श्रेणी ने अज्ञान कपनाना निरासपर विस्तारथी विवेचन कर्यु