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उपोदू
घात
लादेशना हेतुजूत काल, आत्मरूप, अर्थ, संबंध, उपकार, गुणीदेश, संसर्ग अने शब्दनुं स्वरूप समजाव्युं बे. अत्र प्रथम प्रमाण परिच्छेद पूर्ण थाय . । बीजा नयपरिच्छेदमां नयनुं लक्षण अने तेना लेदो जणावतां शब्दनी पंचतयी प्रवृत्ति एवंनूत नयवालो केवी रीते मानतो नयी ते जणावी अर्पित, अनर्पित,व्यवहार,निश्चय,झानक्रिया आदि लेदो अने सर्व नयना नेदोना आनास जणावी आ परिच्छेद पूर्ण कर्यो वे.
त्रीजा निक्षेपपरिच्छेदमां नाम, स्थापना, अव्य अने नाव एवा चार नेद निदेपना जणावी चारेनु स्वरूप, चारेनु प्रयोजन, दरेक निदेपा, मंतव्य अने चारे माटे सिद्धान्त जणावी कयो नय कया निक्षेपा माने ने, निदेपा का रीते अश शके अने जीवना निदेपा का रीते श्राय ते विस्तारथी बताव्यु बे. आ ग्रंथ तर्कना अन्यासी ने प्राथमिक ग्रंथ तरीके बहु उपयोगी ने अने प्रवेशक ग्रंथ जे. प्रशस्तिमां ते लखेने के आ ग्रंथ शिष्यनी प्रार्थनाथी तेए बनाव्यो बे. आ प्रशस्तिथी एक वीजी पण हकीकत जणाय जे अने ते ए के तेए न्यायना सो ग्रंथ बनाव्या त्यारे तेउने न्यायाचार्यनी पदवी मली हती. आविषे प्रशस्तिमां नीचेप्रमाणे जणावेल -
पूर्वन्यायविशारदत्वबिरुदं काश्यां प्रदत्तं बुधायाचार्यपदं ततः कृतशतग्रन्थस्य यस्यार्पितम् ॥ दशमा ज्ञानबिंदु ग्रंथमां ज्ञान- लक्षण अने तेमां देशघाती प्रकृतिनी अपेक्षाए मतिज्ञानादिकनुं गद्मस्थिक गुणपणुं|| घणाज विस्तार अने युक्तिपूर्वक समजाव्यु जे. ज्ञानना मति, श्रुत, अवधि,मनःपर्याय अने केवल एवा पांच लेदो गणावी
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