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रोनुं स्वरूप समजावी श्रुतज्ञानना चौद जेदो सारी रीते समजाव्या बे. पारमार्थिक प्रत्यक्ष्मां व प्रकारना अवधि ( अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, प्रतिपाती ने प्रतिप्राती) नुं अने मनःपर्यायना रुजुमति ने विपुलमति ए बे नेदोनुं स्वरूप जणावी, केवलज्ञाननुं स्वरूप समजावतां योगज धर्मश्री थता ज्ञान करतां तेनुं जुदापणुं जणावी प्रत्यक्ष प्रमाणनुं स्वरूप सारी रीते निवेदन कर्तुं छे. आगल परोक्षनुं लक्षण कही तेना स्मरण, प्रत्यनिज्ञा, तर्क, अनुमान | आगम एवा पांच जेदोमां स्मरण प्रमाणभूत कइ रीते थइ शके, तेने मानवानी केटली जरुर बे ते समजावी, प्रत्य| निज्ञानुं लक्षण, तेने जुडुं मानवानी जरुर ने अनुमान आदिनो तेमां समावेश केवी रीते थाय बे ते सारी रीते | समजाव्यं बे. त्रीजा तर्क नामना भेदनो अंगीकार व्याप्तिग्रहमां उपयोगी बे अने ते शिवाय सामान्य लक्षणा तेमज | शब्दार्थनो वाच्यवाचक जावसंबंध मालूम पमे नहि, माटे तर्कनुं स्वतः प्रमाणपणुं वे एम जणाव्युं वे. यागल स्वार्थ अने | परार्थ ए वे प्रकारना अनुमान ने हेतुनुं लक्षण जणावतां त्रिलक्षण आदि हेतु न बने एम जणावी साध्यनुं स्वरूप, | पहनी सिद्धि विगेरे समजावी दृष्टांत दिकनी जरुर मंदबुद्धिने माटे वे ते समजाव्यं बे. हेतुना विधिसाधक, प्रतिषेधसाधक, उपलब्धि अने अनुपलन्धिना दो बहु विस्तारपूर्वक समजावी सिद्ध, विरूद्ध अने अनेकांतिक एवा त्रण | हेत्वाभासोनुं स्वरूप समजावतां बीजार्जए मानेला तेथी अधिक हेत्वाभासोनुं खंरुन कर्यु बे. आगमप्रमाणं निरूपण करतां अनुमानथी तेनुं जुदापणुं साबीत करी, सप्तजंगी, दरेकनुं स्वरूप, दरेकनुं पार्थक्य जणावी सकलादेश ने विक