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जपोदू
घात.
नयर्नु स्वरूप अने शब्दोनो वास्तविक अर्थ जणाव्यो बे. आगळ जतां नयोना लेदो केटला, केवी रीते बने ते सारी रीते जणावी बीजो सर्ग पूर्ण करी ग्रंथसंपूर्ति करेली बे. __ अाउमा नयोपदेश ग्रंथमां नयनु लक्षण, दीर्घतादिनी पेठे तेनाथी थतो सापेक्षबोध जणावी, संशयादिक दूषणोनुं निराकरण करी नयना व्यार्थिक अने पर्यायार्थिक ए बे नेद जणावी विस्तारथी सात नेद बतावतां ते दरेकनां लक्षणो, प्रदेश, प्रस्थक अने वसतिनां दृष्टांतो समजावीने नयो का रीते, क्यारे अने क्यां लगामाय तेनुं स्वरूप बहु विस्तारथी| समजाव्यु जे. आगळ चालतां दरेक नये मानेला निदेपानो विचार करतां प्रतिमा, प्रतिष्ठा विगेरेनो विचार ग्रंथकर्ताए विस्तारथी कर्यो . आगळ कया नयथी कया मतनी उत्पत्ति के अने तेए केटलो अंश ग्रहण कर्यो चे अने बोड्यो ने ते जणावी मिथ्यात्वनां उ स्थानकोमा कयां स्थानको धर्मी अंशमां नास्तिक अने कयां स्थानको धर्मी अंशमां नास्तिक | ए समजावी क्रिया अने ज्ञान नयनी मंतव्यता दर्शावी सर्व नयनो सिद्धांत बताव्यो बे. | नवमा जैनतर्क परिभाषा ग्रंथमा पहेला प्रमाण परिच्छेदमा प्रमाणनुं लक्षण, प्रमाण अने तेना फळनो कथंचित् । अभेद, प्रमाणना दो, प्रत्यक्षना सांव्यवहारिक अने पारमार्थिक एवा बे नेदो जणाववा साथे मतिज्ञानना स्वरूपमा चतु अने मनथी व्यंजनावग्रह नहि बनवानुं स्पष्ट रीते समजावी अवग्रह, इहा, अपाय अने धारणानुं स्वरूप निरूपण करी तेमां थती शंकाउनु युक्ति पूर्वक समाधान बहु उत्तम रीते करी, दरेकना बार बार दो समजावी मतिज्ञाननो विस्तार बहु स्पष्ट रीते कर्यो . बीजा श्रुतज्ञान- निरूपण करतां संज्ञा, व्यंजन अने लब्धि एवा त्रण प्रकारना अद
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