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________________ उपोद्॥ १५ ॥ त्रणज ग्रंथो लन्य थर शके बे. ते पोते मुसलमानी जुलमना समय पछी थया बे, बतां तेर्जना ग्रंथोनी एकेक कोपी पण मेळववी मुश्केल थइ पके बे; तेथी अनुमान थाय छे के तेजश्री ना कोई घेषीए तेज॑ना ग्रंथोनो नाश करवानो धंधो आदरेलो होवो जोइए. मां नय शब्दनुं लक्षण वरावर जणावी तेना पर्यायो अने ते मानवानी जरुर जणाववा साथे नयोनुं अन्योन्य विरोधपणुं नथी ए वात बहु सारां दृष्टांतो ने हेतुयुक्तिथी सारी रीते बतावी बे. नयना वे जेदो पैकी दरेकनुं लक्षण बांधतां शजु सूत्र नयने जिन गणक्षमाश्रमण विगेरे प्रव्यार्थिकना जेद तरीके ने सिद्धसेन दिवाकर पर्यायार्थिकना जेद तरीके जावे वे तेनुं समाधान करी, सात प्रकारे नयनी व्याख्या करतां प्रदेश, प्रस्थक अने वसतिनां दृष्टांतो अन्योन्य शंकासमाधान सहित उत्तरोत्तर नयनी विशुद्धता दर्शाववा पूर्वक जणाव्या बे. पछी दरेक नयनां लक्षणो तत्त्वार्थ, अनुयोगद्वाराने विशेषावश्यकनी अंदर जणावेलां लक्षणाने अविरोधपणे जणावी दरेक नये मानेला निक्षेपा अने तेनां कारणो जणाव्यांबे, अने तेमां एक एक नयथी उत्पन्न थयेला मतोना अभिप्रायोनुं सारी रीते विवेचन करी सापेक्षपणुं साबीत कर्यु बे, अने जुसूत्र नयनुं विवेचन करतां सप्तरंगीनुं स्वरूप बतावी ते मानवानी जरुर अने तेनुं | शंकासमाधान सारी रीते जणान्युं वे; तेमज जुसूत्रना विवेचनमां 'जीव' शब्दनी सारी रीते नयने श्रीने व्याख्या आपवामां श्रावी बे ने बेवटे निश्चय व्यवहारनी व्याख्या समजावी चरणगुणनी प्राप्तिने माटे प्रयत्न करवानो उपदेश | देवा साथे ग्रंथ पूर्ण करवामां आव्यो वे. घात. ॥ १५ ॥
SR No.023511
Book TitleNyayacharya Yashovijayji Krut Granthmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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