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________________ स्वरूप समजावी देशनानी रीति जणावेली बे. त्रीजा श्रद्धा लक्षाएमां विधिनुं बहुमान, विधिनुं ज्ञान, पच्चखाण पाळवानी योग्यता, वध अने दयानी तारतम्यता विगेरे पर विवेचन करवामां श्राव्युं वे. चोथा क्रियामां अप्रमाद ए| नामना लदणमां मोदना दरेक अनुष्ठाननी तीव्र अनिलाषा, उपदेश करवाने योग्य गुणो, दान, पात्र विगेरे विषयोपर पूरतो प्रकाश पामवामां आव्यो . पांचमा शक्य क्रिया आदर लक्षाणमा संघयणादिकनी हीनताथी का रीते अनुठान करवू, शुल अध्यवसाय कइ रीते राखवा ए विषयपर सारी रीते विचार बताव्यो बे. बघा गुणानुराग लक्षणमा गुणवान्नी प्रशंसा करीते करवी ए विषयपर विवेचन कर्यु बे. सातमा गुरुआज्ञा आराधन लक्षणमा गनुवास केटलो आवश्यक ने तेनी विचारणा, एकाकी विहार करनारने लागतां दूषणो, विहारनी रीति, गुरु अने शिष्यना योग्य गुणो, सत्य प्ररूपकनी प्रशंसा, सुषमा काळमां साधुउनुं अस्तित्व विगेरे विषयो सविस्तर जणाव्या बे. बना नयरहस्य ग्रंथमां नयोनो अधिकार विस्तारथी जपाव्यो . आ ग्रंथने अंगे एक हकीकत बहु जाणवा लायक बे. श्रीमद्यशोविजयजी महाराजे दरेक विषयना रहस्यनूत 'रहस्य' शब्दथी अंकित एकसो श्राउ ग्रंथ करवानो निश्चय कर्यो हतो, अने संप्रदायथी सांनळ्युं ने के तेए ते प्रमाणे १०० ग्रंथो बनाव्या पण हता. आ हकीकत तेमना पोतानाज शब्दोथी पण समजाय बे. ते नापारहस्य नामना ग्रंथनी शरुआतमां लखे बे के भाषाविशुस्वर्थ रहस्यपदांकिततया चिकीर्षिताष्टोत्तरशतग्रंथान्तर्गतप्रमारहस्य स्याद्वादरहस्यादि सजातीयं प्रकरणमिदमारभ्यते । तेजेश्रीनो आ निश्चय अत्र प्रगट थाय जे. कमनसीबे ते ग्रंथो पैकी हालमा मात्र नयरहस्य, नापारहस्य अने उपदेशरहस्य ए
SR No.023511
Book TitleNyayacharya Yashovijayji Krut Granthmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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