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________________ व्रतादिक करीने चित्तनी शुद्धिजणावी व्यवहारथी श्रने निश्चयश्री ज्ञानयोग समजाव्यो बे. त्रीजा क्रिया अधिकारमा क्रिया रहित ज्ञान- निष्फळपणुं बतावी, पतीतजावधी करेली क्रियाथी पण नावनी वृद्धि थाय ने एम जणावी, ज्ञानीने पण क्रियाश्रीज कर्मनो नाश करवानो ने ए समजावी, ते अधिकार पूर्ण कर्यो बे. चोथा साम्याधिकारमा समतावाळो प्राणी केवो होय रे ते जणावी, समता वगरना सामायिकने मायिक कहेतां समताथीज परमात्मतत्त्व मालूम पड़े ने एम बताव्युं जे. समताथी नरतादि राजा केवलज्ञान पाम्या , अने क्रोधथी चंडकोशादिक साधुए पण अशुल गति प्राप्त करी के. दमदंत शषि, नमिराजर्षि, स्कंदक सूरिना शिष्यो, मेतार्य मुनि, गजसुकुमाळ, अर्णिकापुत्र, दृढप्रहारी अने मरुदेवा माताना श्रयेला कट्याणमा जे समता साधन तरीके थयेली ने तेने कयो मुमुकु आदरशे नहि ? ए बतावी चतुर्थ अधिकार अने ग्रंथ पूर्ण कर्यो . | चोथा अध्यात्ममत खंडन अथवा अध्यात्ममत परीक्षा ग्रंथ लखवानो प्रसंग कर्ताने एक कारणथी प्राप्त थयो . दिगंबर लोकोनी मान्यता एवी के केवळानीने कवळाहार होय नहि. आ हकीकत खोटी, अने केवळझान अने कवळाहारने कोइ पण प्रकारनो विरोध नथी ए हकीकतज मात्र या आखा ग्रंथमां बतावी . आ ग्रंथनी टीका पण पोतेज रची डे के जे ग्रंथ साथे पवामां आवी . जिनेश्वर महाराजना चोत्रीश अतिशयमा आहारनिहारनी विधिनुं अदृश्यपणुं ए पण एक अतिशय गणातो होवाथी केवळीने आहारनी सिद्धि जणावी, कवळाहार व्यापक नथी एम घणा विकटपोथी सिद्ध करी, शरीरधारणनी माफक पात्रधारण, ध्यान ते वखते न होवाथी तेना विघ्ननो अन्नाव
SR No.023511
Book TitleNyayacharya Yashovijayji Krut Granthmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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