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________________ उपोद् घात. ॥१३॥ होय . २१ देवताए करेल वंदनादि पण पूर्व अने पनी हितकारी कह्यां बे. २२ वंदनाधिकारमा पूजा अधिकार लाइ तेने शुज तरीके जपावेल . २३ लगवाने देवतानी वंदनाने अनुमोदन आप्यु जे. अन्य अशुल कामोनी माफक नाटकनो निषेध न कर्यो तेज अनुमति जे. २४ नाटकने नक्ति तरीके जणावेल अने नक्तिथी मुर्गतिनो अटकाव थर, सुगतिनो बंध थइ, पर्यंते सिधिगतिनी प्राप्ति थाय बे. २५ दानना उपदेश के निषेधनी पेठे जिनपूजानो उपदेश के निषेध न करवो एम नहि, कारणके ते अनुबंधहिंसा बेज नहि. २६ चैत्य के प्रतिमाने अंगे अती व्यहिंसा अर्थ के अनर्थदंगमां गणवामां आवी नथी. २७ पूजा आदिमां धर्म अधर्म बन्ने थाय ने एम नहि, केमके तेनो उपदेश के तेने माटे कासग्ग होय नहि. ए जणावी दया अने हिंसानु खरेखलं स्वरूप प्रतिपादन कर्यु बे. आ दरेके दरेक मुद्दा उपर|| मूळ सूत्रोनो आधार बताववा तेना आळावा टांकवामां आव्या . त्रीजा अध्यात्मोपनिषद् ग्रंथमां अध्यात्मनी व्याख्या आपीने तेने योग्य माणस अने तेने योग्य मननुं स्वरूप जणावी तुम्हाग्रहीनी दुर्व्यवस्था जणावतां अतींप्रिय पदार्थोने जाणवा माटे शास्त्रनु सामर्थ्य बताव्यु के अने ते शास्त्रनी परीक्षा, माटे कष, बेद अने तापर्नु स्वरूप बतावी, तेनी शुद्धि बहु विस्तारथी जणावी, एकांतवादी पण स्याहाद कश् रीते माने व ते समजाव्युं बे. साथे साथे नयनी शुद्धि पण सारी रीते समजावी जे. पछी श्रुत, चिंता अने लावनामय ज्ञान- विवेचन, करी, धर्मवादने लायक माणसनुं स्वरूप जणावी शास्त्रयोगशुद्धि नामनो अधिकार पूरो कर्यो बे. बीजा ज्ञानयोग अधिकारमा प्रातिननुं स्वरूप, आत्मज्ञानी मुनिनी स्थिति, ब्रह्मर्नु अनुजवीज वेद्यपणुं अने ज्ञानीनु निर्लेपपणुं जणावतां ॥१३।
SR No.023511
Book TitleNyayacharya Yashovijayji Krut Granthmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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