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________________ उपोद्॥ १२ ॥ अनर्पितमय पदार्थोनुं ज्ञान करावे वे अने व्युत्पत्तिनुं कारण तेज बे. विद्वानो तेनो रस जाएया पबी बीजी जगोपर रति करता नथी, छाने ते जिनशासन अंगीकार करनारने आत्मकल्याणनी प्राप्ति थाय बे एम जणाववामां आव्युं वे. वीशमा अनुभव अधिकारमां क्षिप्त, मूढ, विक्षिप्त, एकाग्र ने निरुद्ध ए पांच प्रकारना चित्तनुं लक्षण बतावी योगने अंगे योग्यायोग्यपणानुं विवेचन करी निरालंबन ध्याननी उत्पत्तिमां सालंबन ध्याननुं कारणपएं जणावी बाह्यात्मा अंतरात्मा अने परमात्मानुं स्वरूप निरूपण करी परमात्मपणाने प्राप्त थवानुं कारण ब्रह्माध्ययन जणावी योगीनी सेवाथी संसारसमुद्रनुं सुतरपणुं, जक्तिथी ते पदवीनी प्राप्ति, शुजानुबंधव्यापी यतना, शास्त्रनुं परम श्रालंबनपणुं ने विधिवना आदि जक्तिनुं लक्षण जणावी, बाह्य क्रियावाळानुं परिणतिरहितपणुं बतावी, बाल मध्यम अने बुधनुं लक्षण जाणावतां गुणलेशपर रागधारण, लोकसंज्ञानो त्याग, श्रद्धा, हितग्रहण, पराशानो अनभिलाष, स्तुतिनिंदानुं समपणुं, स्थिरता, वैराग्य, दोष ने देहादिना स्वरूपनो विचार, जगवानमां जक्ति, एकांतस्थानसेवा, सम्यक्त्वमां स्थिरता, प्रमाद रिपुमां अविश्वास, आत्मबोधनी पराकाष्ठा, श्रागमनुं प्रधानपणुं, विकल्पनो त्याग, वृद्धानुसारि वृत्ति अने तत्त्वनो | साक्षात्कार ए सर्व अनुभव जाण्वाना प्रकारो वे एम बताववामां आव्युं छे. एकवीशमा ग्रंथप्रशस्ति अधिकारमां श्रा ग्रंथनो महिमा, सजन दुर्जननो स्वभाव जणावी गुरुनी स्तुति करीने अध्यात्मरुचि जीवोने आनंद थाय ते सारु | ग्रंथ तेने अर्पण कर्यो . छात्र ग्रंथ अने तेनो त्रीजो प्रबंध पूर्ण थाय बे. बीजा देवधर्मपरीक्षा ग्रंथमां प्रतिमाजीने पूज्य तरीके नहि माननारा प्रतिमानी पूजा करनार देवतार्जुने पण अधर्मी || घात. ॥ ११ ॥
SR No.023511
Book TitleNyayacharya Yashovijayji Krut Granthmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1909
Total Pages364
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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