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उपोदू
घात.
३. चंचळ मनने वानर, अश्व, पवन, हाथी अने अग्निनी उपमा देवामां आवी . अनिग्रहित मन केवा केवा प्रकारनां मागं परिणामो निपजावे ने तेनो ख्याल आपी नियमित मन केवां सुंदर परिणाम निपजावे ते जणाववामां श्राव्यु ने. बारमा सम्यक्त्व अधिकारमा मनःशुद्धि फक्त सम्यक्त्व होय तेनेज थाय ने ए जणावी बाकीनी क्रियाउँनु मोक्षमा सहचारीपणुं बताव्यु के. सर्व धर्मनो सार सम्यक्त्वज ने अने ते सम्यक्त्व नव तत्त्वनी श्रधाथीज थाय . अहिंसानी शुद्ध बुद्धि ए पण सम्यक्त्व चे, ते अहिंसा जागवत, पाशुपत, सांख्य, बौछ अने वैदिक विगेरेए पण मानेली , उतां ते सर्वना एकांतवाद प्रमाणे ते घटती नथी ते जणावीने स्याघाद सिद्धांत प्रमाणेज ते अहिंसा (दया) घटी शके ने अने सत्यादिनुं पालन तेने माटेज जे एम जणावी शमादिक खक्षणोवाळाने सम्यक्त्वनी स्थिरता थाय बेएम जणाववामां श्राव्यु . तेरमा मिथ्यात्वत्याग अधिकारमा आत्मा नथी, ते नित्य नथी, कर्ता नथी, जोक्ता नथी, मोदे जतो नथी श्रने मोक्षे जवाना उपाय नथी, ए मिथ्यात्वनां व स्थानकोधाराए नास्तिक, बौछ, सांख्य, मीमांसक विगेरेना मतोनुं| खंगन जणावी ज्ञान अने क्रियाथी श्रात्मानो मोक्ष थवाना उपायो जणाव्या बे. चौदमा असद्ग्रहत्याग अधिकारमां| कदाग्रहथी कर्मनो बंध अने धूर्तपणुं थाय ने एम जणावी ते कदाग्रहनी अमावास्यानी रात्रि साथे तुलना करी तेनुं| त्याज्यपणुं अनेक रीते बहु युक्ति पूर्वक बताव्यु के. पंदरमा योग अधिकारमा पुण्य रूपी कर्मयोग ने आत्मरमणता रूप ज्ञानयोग ए बने जणावी कर्मयोगवाळाने ज्ञानयोगनी जरुर श्रने ज्ञानयोगवाळाने कर्मयोगनी जरुर बतावी , साथे यज्ञादि कर्मयोगनो निषेध करी, ज्ञान योगवाळानु अलिप्तपणुं, रागषरहितपणुं, कर्म बेदवामां समर्थपणुं जणावी
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