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अने जोगीउनी विषयोने अंगे थती पुर्दशा जणाववा साधे श्योपशमादियी अती सन्धिउंना गुणोमा पण विरक्तता जणाववामां श्रावी के. अत्र बीजो प्रबंध पूर्ण श्राय . ___ श्रापमा ममता त्याग अधिकारमा तेनी जरुर अने ममताने राक्षस, स्त्री अने व्याधिनी उपमा, तेने लीधे थती श्रारंजादिकमां प्रवृत्ति, जात्यंध करतां पण तेनुं सविशेषपणुं, ममता करनारनी स्त्रीपुत्रादि साथे चेष्टा, तेनु अपवित्रने
पवित्र मानवापणुं तथा दुनियाना संबंधमां नित्यनो नम जणावी, आत्मा अने पुद्गळो जुदा ने अने तेनो संबंध नाशजवंत ने ए जाणवाथी ममतानो नाश थवाना कारणभूत जिज्ञासा उनी थाय ने अने ते ममता जिज्ञासा अने विवेक बन्नेथीज रोकी शकाय ने ए समजाव्यु बे. नवमा समता अधिकारमा समतानुं स्वरूप, ते राखवानी जरुर, तेनी उंची
ते विना बीजी क्रियाउन निष्फळपएं, तेनाथी उचितनी प्राप्ति, अवगुणोनो नाश, सामान्य लोकोनुं ते विषयमा अज्ञात होवाथी श्वारहितपणुं, कर्मना नाशनुं ते मुख्य कारण इत्यादि बतावी तेने चारित्रना प्राण तरीके उळखावी अध्यात्म प्रसादथी तेमां थती तलालीनता जणाववामां आवी जे. दशमा सदनुष्ठान नामना अधिकारमा सदनुष्ठाननी समताथी प्राप्ति जणावी तेना विष, गरल, अन्योन्यानुष्ठान, तहेतु अने अमृत एवा पांच लेद जपाव्या बे. पांच पैकी प्रश्रमना त्रण अनुष्ठान असद्ले अने बेक्षा वे सदू जे. जे अनुष्ठाननो आदर करवामां प्रीति, निर्विघ्नता, संयोग, तत्त्वजिज्ञासा अने पंमितोनी सेवा होय ते सदनुष्ठान कहेवाय. अग्यारमा मनःशुद्धि अधिकारमा मनःशुधिवाळाने रागष नथाय ए स्पष्ट समजाव्युं . इष्ट पदार्थादिनमळवाथी शोक अने मळवाथी आनंद थाय ने तेनुं कारण मननी चंचळताज