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श्रीमद्य०
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प्रमाणे बतां पण एटलुं तो चोक्कस कही शकाय बे के ए महात्मा श्रढारमा सैकाना पूर्वविभागमां विद्यमान हता, अने तेमनी केटलीक गुजराती पद्यरचनामां मारवामी जाषाना शब्दो दृष्टिगत थता होवाथी ते साहेबनी जन्मभूमि मारवारुमां होय अथवा ते तरफ विशेष विहार होय एम पण जणाय बे. बीजां साधनो तपासतां एमनो विहार गुजरात अने काठीयावारुमां तो जरुर थयेलो बे, ए पण चोक्कस नीकली आवे छे. श्रीशांतिदास शेठना आग्रहथी धर्मसंग्रह ग्रंथ श्रीमानविजयजी उपाध्याये रचेलो के अने श्रीमद्यशोविजयजी महाराजे शोधी आप्यो बे. ते ग्रंथनी प्रशस्तिमां ए रचना अमदावादमां करेली होवानुं जणाव्यं बे तेथी ए बात सिद्ध थाय वे. वळी एक वखत श्रीपाटणमां श्रीमद्यशोविजयजी, मानविजयजी ने रामविजयजी एक साथे जुदे जुदे उपाश्रये चतुर्मास रह्या हता, तेमां उपाध्यायजीनुं व्याख्यान तो द्रव्यानुयोगगर्जित चालतं होवाथी तेमना व्याख्यानमां श्रोतानी संख्या थोमी थती हती अने श्रीरामविजयजीनी व्याख्यानकळा जनमनरंजनकारी होवाथी त्यां श्रोतार्जुनी जीम यती हती. एक दिवस तेमनी व्याख्यानकळा जोवा | सारु उपाध्यायजी महाराज पोते त्यां पधार्या हता, इत्यादि चाली आवती दंतकथा उपरथी एउनो विहार गुजरातमां विशेष थयो छे एम पण पूरवार थइ शके बे.
श्री महावीर स्वामी जगवंते दीर्घायुष आदि कारणोथी श्री सुधर्मास्वामी ने गानी अनुज्ञा श्रापी न सोंप्यो तेमनी एकसठमी पाटे श्रीविजयसिंह सूरि थया बे. तेमनी अनुज्ञाथी मुनिवर्गमां प्रवेश पामेली शिथिलता दूर करवा सारु श्री सत्यविजयजी महाराजे क्रिया उच्चार कर्यो तेमनी साथे या महापुरुष पण सहायक हता तेवो उलेख " जास हित
जन्मच०
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