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शीखधी मार्ग ए अनुसर्यो” इत्यादि वाक्योधी नीकळी शके ले. तेथी अने श्रीविजीयसिंहसूरि संवत १७०७ मा स्वर्गवास श्रयेला होवाथी सत्तरमा सैकाना प्रांतनागमां श्रा महापुरुषनो जन्म अने अढारमा सैकाना पूर्वार्धमा एमनो विहार होवा- पुरवार थर शके बे. | एमनी पट्टपरंपरा तपासवामाटे वधारे दूर जवानी जरुर रहेती नथी. कारणके ए श्रीहीरविजयजीसूरिना संतानमांज श्रयेला . श्रीहीरविजयजीसूरिना शिष्य उपाध्याय श्रीकल्याणविजयगणि, तेमना मुख्य शिष्य पंमित श्रीलानविजयगणि, तेमना मुख्यशिष्य पंमित श्रीजीतविजयगणि, तेमना गुरुलाइ पंमित श्रीनयविजयगणि अने तेमना चरणकिंकर महामहोपाध्याय श्रीयशोविजयजी श्रया . एन साहेबे दीदा क्यारे लीधी अने एमने उपाध्यायपद क्यारे श्रापवामां । श्राव्यु एनो संवत कोइ जग्याए मळी शकतो नथी. परंतु एमणे बाल्यावस्थामां ब्रह्मचारीपणेज चारित्र अंगीकार कर्यु हशे एवं एमनी पुष्कळ चमत्कारवाळी कृति सूचवे . | ए साहेब श्रीसत्यविजयगणि, श्रीविनयविजय उपाध्याय अने आनंदघनजी महाराजना समकालीन हता ए तो
किस बे. श्रीविनयविजय उपाध्याय एमना काकागुरु यता हता. चारित्र लीधा बाद धर्मशास्त्रनुं ज्ञान मेळवतां संस्कृत लाषानो अने न्यायशास्त्रनो विशेष अन्यास करवानी उत्कंग श्रतां ते साहेब काशीमां अभ्यास करवा गया हता. ए हकीकत तो अनेक लेखो उपरथी नीकळी शके जे. ते वखते तेमनी साथे श्रीविनयविजय उपाध्याय हता एम केटलाक कहे जे अने केटलाक तेमना गुरुज साथे हता एम बतावे . आबे हकीकतमां का हकीकत सत्य जे ते चोक्कस कही