SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छआरानो विचार ॥८४॥ हापल्योपमनो आठमो भाग बाकी रहे त्यारे कल्पवृक्षनी मंदता थाय. कुलगरोनी उत्पत्ति थाय अने दंडनीति सिद्धांत शरु थाय. छेवटे ८४ लाख पूर्व, त्रण वर्ष ने साडाआठ मास बाकी रह्या त्यारे सर्वार्थ सिद्ध महा विमानथी रहस्य चवी ३३ सागरनुं आयुष्य भोगवीने विनिता नगरीमा नाभिकुलकर पिता, मरुदेवी मातानी कुक्षीने विषे ॥८४॥ ऋषभदेव भगवान् उपना. सवानव मासे जन्म्या, प्रथम स्वप्ने ऋषभ (वृषभ) जोयो तेथी ऋषभनाम दीg, ऋषभदेव भगवाने युगल-धर्म निवारीने असि, मषी ने कृषि वगेरे ७२ कला अनुकंपा निमित्ते (मानव-हित माटे) लोकोने सीखवी. २० लाख पूर्व सुधी कुमारपदे रह्या. ६३ लाख पूर्व लगें राज्य भोगव्यु. पछी भरतने विनितानु राज्य अने बीजा पुत्रोने अन्यदेशोनुं राज्य आपी चारहजार पुरुष साथे संयम लीधो. एकलाख पूर्वलगे संयम पाल्यो एकहजार वर्ष छद्मस्थपणे रह्या. बाकीनो काल केवलपणे विचरी, अंतिम समये अष्टापद पर्वत उपरे पद्मासने बेसी; दश हजार साधु साथे प्रभुनिर्वाण पाम्या. हवे प्रभुना पांच कल्याणक कहे छे :उत्तराषाढा नक्षत्रमा सर्वार्थसिद्ध महाविमानथी. चव्या, ए प्रथम कल्याणक. उत्त० नक्षत्रमा जन्म्या, ए बीजें खरी रीते 'इक्ष्वाकु भूमि' नाम जोइए, कारण ? 'विनिता'नी स्थापना तो इन्द्रे ऋषभदेवप्रभु माटे करेल छे. जन्मवखते विनिता नगरीनी स्थापनाज थयेल नहिं. शास्त्रोमा 'इक्ष्वाकु भूमि' नाम जोवाय छे, २ दशहजार साधु साथे एक नक्षत्रमा सिद्ध थया, बाकी एक समये १०८ सिद्ध थयेल छे. ३ कल्याणक पांचज कहेवाय, 'राज्याभिषेक' कल्याणक कहेवा नहिं 'जंबदीप पसती'मा नक्षवनी समानता ए राज्याभिषेकनं वर्णन कर्य हे त्यां 'कल्याणिक' शब्द कहेल नथी. कल्याणक-प्रसंगे जीवोने शांति, देवोन आगमन अने महोत्सव थाय ते कल्याणिक कहेवाय. Pro%ASAR F454545454545454
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy