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दंडक
सिद्धांतरहस्य ॥४४॥
॥४४॥
त्रण पहेली. वैमानिक संज्ञी छे. वेद १-२ देव०मां बे स्त्री ने पुरुष वेद. वीजा देव०थी यावत् सर्वार्थ सिद्ध विमान सुधी एक पुरुषवेद. पर्याप्ति पांच, व्यंतरवत्. दृष्टि पहेला देवथी यावत् नवौवेयक सुधी त्रण अने पांच अनुत्तर विमानमा एक सम्यक् दृष्टि. दर्शन त्रण. ज्ञान पहेला देव०थी यावत् नव ग्रै सुधी त्रण ज्ञान ने त्रण अज्ञान अने पांच अनुत्तर वि०मांत्रण ज्ञान, अज्ञान नथी. योग इग्यार व्यंतरवत्. उपयोग, नव ग्रै० सुधी नव अने पांच अनुत्तर वि०मा छ व्रण ज्ञान, त्रण दर्शन. तेमज आहार-छ दिशानो ले, ते वे प्रकारनो ओज ने रोम; ते पण शुभ ने अचित ले. उववाय ते पहेला देव०थी यावत् आठमा दे०मा तिर्यंच पंचेंद्रिय ने मनुष्य ए बे दंडकना उपजे. नवमा दे०थी यावत् सर्वार्थ सिद्धमा एक मनुष्य दंडकनो उपजे. स्थिति-पहेला देना देवनी ज. एक पल्यनी ने उ० बे सागरनी. तेनी परिग्रहित देवीनी ज. एक पल्यनी ने उ० सात पल्यनी. अपरिग्रहित देवीनी ज० एक पल्यनी ने उ० पचास पल्यनी. बीजा देना देवनी ज. एक पल्यनी झाझेरी ने उ० बे सागरनी झाझेरी. तेनी परिग्रहित देवीनी एक पल्य झा ने उ० नव पल्यनी. अपरि० देवीनी ज० एक पल्य झा ने उ. पंचावन पल्यनी. बीजे दे० ज० बे सागरनी ने उ० सात सागरनी. (बीजा देव०थी उपर देवी नथी तेडावीजाय) चोथे दे.ज.बे सागरनी झा ने उ० सात सागर झाझेरी. पांचमे दे० ज० सात सा० ने उ० दश सा०, छडे दे० ज० दश सा० ने उ० चौद सा०, सातमे दे० ज० चौद सा ने उ. सत्तर सा०, आठमे दे०ज. सत्तर
सूत्र वगेरेमा बीजा वेव०मा बे सागरनी स्थिति कहेल छे, 'झाझेरी' कही नथी.