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सिद्धांत
रहस्य
॥४३॥
पल्य ने उ० पा पल्य झाझेरी ताराना देवनी ज० पल्यनो आठमो भाग अने उ० पा पल्यनी, तेनी देवीनी ज० पल्यनो आठमो भाग अने उ० पा पल्यनो आठमो भाग झाझेरी. समोहया - असमोहया बे मरण होय. चवण ते ज्योतिष्क चवीने पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, तिर्यच पंचेंद्रिय अने मनुष्य ए पांच दंडकमां जाय. गतिआगति ते ज्योतिष्क बे गतिमां जाय अने तेमां आवे पण बे गतिना प्राण दश इति त्रेवीशमो ज्योति कनो दंडक समाप्त.
हवे चोवीसमो वैमानिकनो दंडक कहे छे:--तेमां शरीर त्रण वै०तै०ने कार्मण शरीर०, अवगाहना ज०पहेला देवलोकधी यावत् पांचमा अनुत्तर विमान सुधी अंगुलना असंख्यातमा भागनी अने उ० १-२ देवलोके सात हाथनी. ३-४ दे० छ हाथनी. ५-६ दे० पांच हाथनी ७-८ दे० चार हाथनी. ९-१०-११-१२ दे० त्रण हाथनी. नव ग्रैवेयकमां बे हाथनी. चार अनुत्तर विमानमां एक हाथनी अने सर्वार्थ सिद्धमां मुंडा हाथनी. उत्तर वै० करे तो ज० अंगु० संख्या० ने उ० एक लाख योजननी. संघयण नथी. संठाण, समचउरंस०, कषाय-चार पण लोभ घणो संज्ञा चार पण परिग्रह संज्ञा घणी. लेश्या १-२ देवलोके एक तेजोलेश्या ३-४-५ दे० पद्म लेश्या. ६ट्ठा दे०थी यावत् नव ग्रैवेयक सुधी शुक्ल लेश्या अने पांच अनुत्तरविमानमां परम शुक्ल लेश्या. इंद्रिय पांच. समुद्घात-बार देवलोकमां पांच, आहारक ने केवल समु० नहिं. नव ग्रैवेयक ने पांच अनुत्तर विमानमां समु०
सर्वार्थ सिद्ध वि० मां मुंडा हाथनी अवगाहना छे. एवो विशेष पाठ जोवामां भावेल नथी.
दंडक ॥४३॥