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दंडक
सिद्धांतरहस्य ॥४२॥
॥४२॥
NAGAR
तेमज आहार-ज. ने उ० छ दिशानो आहार ले, ते बे प्रकारनो-रोम ने ओज, ते पण शुभ ने अचित्त ले. उववाय ते व्यंतरमा तिर्यंच अने मनुष्य ए बे दंडकना उपजे. स्थिति व्यंतरनी ज० दश ह० वर्षनी अने उ० एक पल्यनी. तेहनी देवीनी ज० दश ह० वर्षनी ने उ० अर्द्ध पल्यनी. समोहया-असमोहया बे मरण होय. चवण ते व्यंतर, चवीने पृथवी, पाणी, वनस्पति, तिर्यंच अने मनुष्य ए पांच दंडकमां जाय. गति-आगति ते व्यंतर, मनु| प्य ने तिर्यचनी गतिमां जाय.अने तेमां आवे पण बे गतिना. प्राण दश. इति यावीशमो व्यंतरनो दंडक समाप्त.
हवे ब्रेवीशमो ज्योतिष्कनो दंडक कहे छ:-तेमां शरीर, अवगाहना, संघयण, संठाण, कषाय, संज्ञा, लेश्या, इंद्रिय, समुद्घात, एटला द्वारो व्यंतर प्रमाणे जाणवा. संज्ञी (द्वारमा) एकला संज्ञी छे. वेद, पर्याप्ति, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान, योग, उपयोग, तेमज आहार, उववाय, ए द्वारो पण व्यंतरवत् जाणवा. स्थिति चंद्रमाना देवनी ज. पा पल्यनी ने उ० एक पल्यने एक लाख वर्षनी, तेनी देवीनी ज० पा पल्यनी ने उ० अर्द्ध पल्यने पचाश हजार वर्षनी, सूर्यना देवनी ज. पा पल्यनी ने उ. एक पल्य ने एक हल्वर्षनी, तेनी देवीनी ज. पा पल्यनी ने उ० अर्द्ध पल्य ने पांचसो वर्षनी. ग्रहना देवनी ज. पा पल्यनी ने उ. एक पल्यनी, तेनी देवीनी ज. पापल्य ने उ० अर्द्ध पल्यनी. नक्षत्रना देवनी ज. पा पल्यनी ने उ० अर्द्ध पल्यनी, तेनी देवीनी ज. पा
. असंज्ञी तियंच, मरीने भवनपति अने व्यतरमा उपजे छे, तेथी मेमां अपर्याप्ता अवस्था ए 'असंज्ञी' होय; परंतु ज्योतिष्कमा असंज्ञी उपनता नथी. माटे ज्योतिष्क संज्ञी होय.