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________________ [ ५१ ] . दीक्षित का स्वयं का लक्षण निम्न है: 'बुद्धिः सर्वात्मनान्योन्यतेपिनानार्थसंश्रया। सादृश्यमूला वार्थस्पृक्संदेहालंकृतिर्मता ॥' 'जिस सादृश्यमूलक बुद्धि में, एक दूसरे को सब प्रकार से हटाते हुए अनेक पदार्थों का अनुभव हो तथा जो 'वा' अर्थ का स्पर्श करती है, उसे संदेह अलंकार कहा जाता है ।' . इस लक्षण में 'अन्योन्याक्षेपिनानार्थसंश्रया' पद विशेष महत्त्व का है। संभवतः कुछ लोग इसकी अतिव्याप्ति विकल्प अलंकार में मानें, किन्तु बहाँ समस्त अर्थ एक दूसरे का प्रतिक्षेप नहीं करते। विकल्प में सदा दो पक्ष होते हैं तथा जिस व्यक्ति को जैसा फल चाहिए वह वैसे पक्ष का आश्रय लेता है। अतः ध्यान से देखने पर वहाँ एक ही पक्ष का महत्त्व होता है, प्रणत राजा के पक्ष में वह शिरोनमन है; युद्ध करने की क्षमता वाले राजा के पक्ष में धनुर्नमन । इसी तरह अपकृति में भी दोनों पक्ष समानरूप से एक दूसरे के प्रतिक्षेपी नहीं होते। अतः यह लक्षण उनमें अतिव्याप्ति नहीं होगा। (८) भ्रांतिमान् चित्रमीमांसा में भ्रांतिमान् का निम्न लक्षण दिया गया है : 'कविसंमतसादृश्याद्विषये पिहितारमनि । आरोप्यमाणानुभवो यत्र स भ्रान्तिमान्मतः॥' (चित्र० पृ० ७५) जहाँ कविप्रतिभा के द्वारा कल्पित उस विषय पर, जिसका विषयत्व ( मुखत्वादि ) छिपा दिया जाय, अनुभविता को आरोप्यमाण ( विषयी, चन्द्रादि) का अनुभव हो, वहाँ भ्रांतिमान् अलंकार होता है।' इस लक्षण में प्रयुक्त 'पिहितात्मनि' पद के द्वारा इस बात की ओर संकेत किया गया है कि विषय में विषयी का अनुभव स्वारसिक एवं कविप्रतिभा के द्वारा कल्पित होता है, रूपक की भाँति आहार्य नहीं होता। इसलिये इस लक्षण की व्याप्ति रूपक आदि अन्य अलंकारों में न हो सकेगी। __ अप्पय दीक्षित ने इसके कई प्रकार दिये हैं :-(१) शुद्ध भ्रांति, (२) उत्तरोत्तर भ्रांतिः (३) मिन्नकर्तृक उत्तरोत्तर भ्रांति, (४) अन्योन्यविषयक भ्रांति । इनमें द्वितीय तथा तृतीय प्रकार की भ्रांति में विशेष चमत्कार पाया जाता है । दिमात्र उदाहरण यह है : 'शिक्षानैमञ्जरीति स्तनकलशयुगं चुम्बितं चञ्चरीकै स्तत्त्रासोल्लासलीलाः किसलयमनसा पाणयः कीरदष्टाः। तल्लोपायालपन्त्यः पिकनिनदधिया ताडिताः काकलोकै रित्थं चोलेन्द्रसिंह त्वदरिमृगहशां नाप्यरण्यं शरण्यम् ॥' 'हे चोलराज, तुम्हारी शत्रुरमणियों को जंगल में भी शरण नहीं मिल पाती। उनके स्तनकलशों को मारी समझ कर गूंजते भौंरों ने चूम लिया; भौंरों से डरने के कारण सविलास करपल्लवों को किसलय समझ कर तोतों ने काट लिया; और उन्हें भगाने के लिए चिल्लाती (तुम्हारी शत्रुरमणियों को ) कोयल की वाणी समझ कर कौओं ने मार भगाया।' यहाँ भिन्नकर्तृक उत्तरोत्तरभ्रांति का निबंधन पाया जाता है। भौरे, तोते तथा कौर भ्रांति से स्तनकलश, करपल्लव एवं वाणी को क्रमशः मंजरी, किसलय एवं कोकिलालाप समझ बैठते हैं।
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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