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________________ [ १८ 1 दीपिका' की पुष्पिका में अप्पय ने चिन्नवीर के पुत्र तथा लिंगमनायक के पिता, चिन्नबोम्म को अपना आश्रयदाता बताया है। चिन्नबोम्म वेलूर का राजा था तथा इसके १५४९ ई० तथा १५६६ ई० के लेख मिले हैं। इस प्रकार अप्पय दीक्षित का रचनाकाल मोटे तौर पर १५४९ ई० तथा १६१३ ई० के बीच जान पड़ता है। अतः दीक्षित को सोलहवीं शती के अन्तिम चरण में रखना असंगत न होगा। इसकी पुष्टि इन प्रमाणों से भी हो जाती है कि अप्पय दीक्षित का उल्लेख कमलाकर भट्ट (१७ वीं शती प्रथम चरण) ने किया है तथा उन्हीं दिनों पंडितराज जगन्नाथ ने अप्पय दीक्षित का खण्डन भी किया है। सतरहवीं शती के मध्यभाग में अप्पय दीक्षित के भ्रातुष्पौत्र नीलकण्ठ दीक्षित ने चित्रमीमांसादोषधिकार की रचना कर पंडितराज के चित्रमीमांसाखण्डन का उत्तर दिया था। __ अप्पय दीक्षित के नाम के तीन रूप मिलते हैं:-अप्पय दीक्षित, अप्पय्य दीक्षित तथा अप्प दीक्षित । कुवलयानन्द के ऊपर उद्धत पथ में 'अप्पदीक्षित' रूप मिलता है, पर प्रायः इसका अप्पय तथा अप्पय्य रूप ही देखा जाता है। पंडितराज ने दोनों रूपों का प्रयोग किया है :देखिये अप्पय दीक्षित (रसगंगाधर पृ० १४), अप्पय्य दीक्षित (पृ० २१०)। वैसे चित्रमीमांसा खण्डन की भूमिका के पथ में अप्पय रूप ही मिलता है : सूचमं विभाग्य मयका समुदीरितानामप्पय्यदीक्षितकृताविह दूषणानाम् । निर्मसरो यदि समुदरणं विदध्यादस्याहमुज्ज्वलमतेश्वरणौ वहामि ॥ (चित्रमीमांसाखण्डन. काव्यमाला पृ० १२३) अप्पय दीक्षित एक सर्वशास्त्रज्ञ विद्वान् थे, जिनके विविध शास्त्रों पर लिखे ग्रन्थों की संख्या १०४ मानी जाती हैं। इससे अधिक अन्यकृतियों का पता अभी नहीं लगा है । वरदराजस्तव के कुछ पथों को तो कुवलयानन्द तथा वृत्तिवात्तिक में उदाहृत किया गया है । वृत्तिवार्तिक में उद्धृत विष्णुस्तुतिपरक कुछ पद्य संभवतः इसी के हैं। यद्यपि दीक्षित ने यह नहीं कहा है कि वे इससे उद्धृत हैं। कुवलयानन्द में उन्होंने स्पष्टतः 'मदीये वरदराजस्तवे' कहकर अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार के प्रकरण में तीन पद्य उपस्थित किये हैं। अप्पय्य दीक्षित के १०४ ग्रन्थों में प्रसिद्ध ग्रन्थ निम्न हैं: १. अद्वैतवेदान्तविषयक ६ ग्रन्थ :-श्रीपरिमल, सिद्धांतलेशसंग्रह, वेदांतनक्षत्रवादावली, मध्वतन्त्रमुखमर्दनम् , मध्वमतविध्वंसनम् , न्यायरक्षामणि । २. भक्तिविषयक २६ रचनाएँ:-शिखरिणीमाला, शिवतत्त्वविवेक, ब्रह्मतर्कस्तव (लघुविवरण), आदित्यस्तवरत्नम् तथा इसकी व्याख्या, शिवाद्वैतविनिर्णय, शिवध्यानपद्धति, पञ्चरत्न तथा इसकी व्याख्या, आत्मार्पणं, मानसोल्लास, शिवकर्णामृतम्, आनन्दलहरी, चन्द्रिका, शिवमहिमकालि. कास्तुति, रत्नत्रयपरीक्षा तथा इसकी व्याख्या, अरुणाचलेश्वरस्तुति, अपीतकुचाम्बास्तव, चन्द्रकलास्तव, शिवार्कमणिदीपिका, शिवपूजाविधि, नयमणिमाला तथा इसकी व्याख्या। ३. रामानुजमतविषयक ५ प्रन्य:-नयनमयूखमालिका तथा इसकी व्याख्या, श्रोवेदांतदेशिकविरचितयादवाभ्युदय की व्याख्या तथा वेदान्तदेशिकविरचित पादुकासहस्र की व्याख्या एवं वरदराजस्तव। ४. माध्वसिद्धांतानुसारी २ ग्रन्थ:-न्यायरत्नमाला तथा इसकी व्याख्या। ५म्याकरणविषयक ग्रन्थ:-नक्षत्रवादावली। ६. पूर्वमीमांसाशास पर २ प्रन्य:-नक्षत्रवादावली तथा विधिरसायनम् । . .. अलंकारशासन पर ३ ग्रन्थ:-वृत्तिवार्तिक, चित्रमीमांसा तथा कुवलयानन्द ।
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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