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________________ ( १ ) पिछले खेवे के उन आलंकारिकों में, जिन्होंने अलंकारशास्त्र के विकास में एक निश्चित योग दिया है, तीन ौलिक ग्रन्थकार तथा तीन प्रसिद्ध टीकाकार हैं । मौलिक ग्रन्थकारों में अध्यय दीक्षित, पंडितराज जगन्नाथ तथा विश्वेश्वर पंडित का नाम लिया जा सकता है, तथा टीकाकारों में गोविन्द ठक्कुर. नागेश भट्ट एवं वैद्यनाथ तत्सत् का । यद्यपि अलंकारशास्त्र के क्षेत्र में पंडितराज जगन्नाथ तथा विश्वेश्वर का महत्त्व दीक्षित से कहीं अधिक है, क्योंकि पंडितराज ने जिस मौलिकता से तत्तत् समस्याओं पर विचार किया है, तथा विश्वेश्वर ने जिस पांडित्यपूर्ण शैली में विषय विवेचन उपन्यस्त किया है, वह दीक्षित में नहीं मिलते, तथापि दीक्षित का भी अपना एक स्थान है, जिसका निषेध नहीं किया जा सकता । दीक्षित का व्यक्तित्व एक सर्वतंत्रस्वतन्त्र पंडित का व्यक्तित्व है, जिसने वेदांत, मीमांसा, व्याकरण, साहित्यशास्त्र जैसे विविध विषयों पर अपनी लेखिनी उठाई है। इस दृष्टि से दीक्षित की तुलना नागेश भट्ट से की जा सकती है, यद्यपि नागेश का अपना क्षेत्र व्याकरण तथा साहित्यशास्त्र ही रहा है, तथा उनके मौलिक ग्रन्थ व टीकाएँ इन्हीं दो शास्त्रों से सम्बद्ध हैं । दीक्षित मूलत: मीमांसक हैं, तो नागेश मूलतः वैयाकरण | दोनों ने अपनी साहित्यवित्ता का परिचय देने के ही लिये अलंकारशास्त्र पर रचनाएँ की हैं । यद्यपि दीक्षित मौलिक रचनाओं के लेखक हैं तथा नागेश टीकाकार हैं, तथापि दीक्षित के तीनों ग्रन्थों में मौलिकता का प्रायः अभाव है, जबकि नागेश की टीकाओं - उद्योत तथा गुरुमर्मप्रकाश - में भी मौलिक विचार बिखरे हुए हैं। यह तथ्य नागेश तथा दीक्षित के तारतमिक मूल्य का संकेत दे सकता है। दीक्षित ने कुवलयानन्द तथा चित्रमीमांसा में कुछ मौलिक विचार देने की चेष्टा अवश्य की है, किन्तु उन सभी मौलिक उद्भावनाओं का पंडितराज ने सफलतापूर्वक खण्डन किया है तथा उनकी मौलिकता संदिग्ध हो उठती है । इतना होते हुए भी अप्पय दीक्षित के ग्रन्थों का दो कारणों से कम कुवलयानन्द में उनके समय तक उद्भावित समस्त अलंकारों का दूसरे उनका उल्लेख स्थान-स्थान पर रसगंगाधर, अलंकार कौस्तुम, महत्त्व नहीं है - प्रथम तो उनके साधारण परिचय मिल जाता है, तथा उद्योत में मिलने के कारण इन ग्रन्थों के अध्येता के लिए दीक्षित के विचारों को जानना जरूरी हो जाता है । अप्पय दीक्षित के स्वयं के ही ग्रन्थ से उनके समय का कुछ संकेत मिलता है। कुवलयानन्द के उपसंहार में बताया गया है कि वह दक्षिण के किसी राजा वेंकट के लिए लिखा गया था । असुं कुवलयानन्दमकरोदप्पदीचितः । नियोगाद्वेङ्कटपतेर्निरुपाधिकृपानिधेः ॥ आफ्रेक्ट तथा एगेलिंग के मतानुसार अप्पय दीक्षित का आश्रयदाता विजयनगर का वेंकट ( १५३५ ई० के लगभग ) था । किन्तु हुत्श के मतानुसार इनका आश्रयदाता पेन्नकोण्डा का राजा वेंकट प्रथम था, जिसके १५८६ ई० से १६१३ ई० तक के लेख मिलते हैं।' 'शिवादित्यमणि १. फ्रेंच विद्वान् रेमो ( Regnand) ने 'रू रेतोरीके सस्क्रिति' ( Le Rhetorique Sara nskrit) पृ० ३७५ पर अप्पय दीक्षित को विजयनगर के कृष्णराज ( १५२० ई० ) का समसामयिक माना है, जो भ्रांति है । २ कु० भू०
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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