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________________ परमात्मतत्त्व इन चार शाखाओं और उनके अवान्तर भेदोंमें निर्वाणके स्वरूपके बारेमें जो परस्पर विरोधी और बहुत बार तो गूढ़ या जटिल कल्पनाएँ हुई हैं उन सबको यथावत् समझनेका कार्य किसी भी तरह किसीके लिए सुगम प्रतीत नहीं होता; फिर भी रूसी प्रोफेसर श्वेरबात्स्कीने The Conception of Buddhist Nirvana नामक अपने ग्रन्थमें बौद्ध-निर्वाण-विषयक विचारणाओंको स्पष्ट करनेका भगीरथ प्रयत्न किया है। पालि और संस्कृत लभ्य सभी ग्रन्थों के अतिरिक्त तिब्बती, चीनी और जापानी भाषामें लिखे हुए बौद्ध ग्रन्थोंके परिशीलनके आधारपर इस विद्वान्ने बौद्धनिर्वाणकी कल्पनाओंका ऐतिहासिक तथा तुलनात्मक दृष्टिसे निरूपण करनेका तथा समझानेका प्रयत्न किया है। इस विद्वान्के उपर्युक्त ग्रन्थके आधारपर तथा कतिपय पालि एवं संस्कृत बौद्ध ग्रन्थोंके वाचन और परिशीलनके आधारपर बौद्ध-निर्वाणके बारेमें मैं जो कुछ समझा हूँ उसका अतिसंक्षेपमें यहाँपर निर्देश करना स्थानप्राप्त है। पिटकवादी प्राचीन बौद्ध और व्याख्यावादी वैभाषिक मध्यमप्रतिपदाका अनुसरण करके स्थिर द्रव्यका इन्कार करते रहे और क्षणिक धर्मोंको सत् मानकर उन्हें संस्कृत कहते रहे। साथ ही वे आकाश एवं निर्वाण ये दो असंस्कृत तत्त्व भी मानते रहे। वे पुद्गलनैरात्म्यवादी हैं, क्योंकि क्षणिक धर्मों की परम्परामें पुद्गल अर्थात् जीव नामके किसी स्थिर द्रव्यका अस्तित्व वे स्वीकार नहीं करते हैं-असंस्कृत निर्वाण अर्थात् कार्यकारणभाव या प्रतीत्यसमुत्पादके नियमके अनुसार उत्पन्न नहीं ऐसा निर्वाण । परन्तु ऐसा निर्वाण माननेपर भी उस दशाका कोई भावात्मक चित्र उन्होंने नहीं खींचा। वे इतना ही कहकर छुट्टी पा लेते हैं कि दुःख और दुःखहेतु अर्थात् समुदय इन दोनोंका अन्त ही
SR No.023488
Book TitleAdhyatma Vicharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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